कुरान - 2:7 सूरह अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

خَتَمَ ٱللَّهُ عَلَىٰ قُلُوبِهِمۡ وَعَلَىٰ سَمۡعِهِمۡۖ وَعَلَىٰٓ أَبۡصَٰرِهِمۡ غِشَٰوَةٞۖ وَلَهُمۡ عَذَابٌ عَظِيمٞ

अनुवाद -

7. अल्लाह ने उनकी दिलों पर मुहर लगा दी है [22], और उनके कानों पर भी, और उनकी आँखों पर परदा है, और उनके लिए सख़्त अज़ाब (सज़ा) है।

सूरह आयत 7 तफ़सीर


आयत 7 (सूरह अल-बक़रह) — तफ़सीर और समझ

7. अल्लाह ने उनकी दिलों पर मुहर लगा दी है [22], और उनके कानों पर भी, और उनकी आँखों पर परदा है, और उनके लिए सख़्त अज़ाब है।

[22] दिलों पर मुहर, कान बंद और आँखों पर परदा

➡️ "अल्लाह ने उनकी दिलों पर मुहर लगा दी है..."
यह उन लोगों की बात हो रही है जो:

  • हक़ (सच) को जानकर भी इनकार करते हैं,
  • बार-बार सच को झुठलाते हैं,
  • और ज़िद और घमंड की वजह से ईमान लाने से इंकार करते हैं।

👉 अल्लाह ऐसे लोगों के दिलों पर मुहर (seal) लगा देता है —
यानि अब हिदायत (guidance) उनके दिल में दाख़िल नहीं हो सकती।

➡️ "और उनके कानों पर भी..."
अब ये लोग हक़ बात सुनते हैं, लेकिन समझते नहीं,
उनके कान बंद जैसे हो जाते हैं — जैसे कोई नसीहत उनके अंदर असर ही ना करे।

➡️ "और उनकी आँखों पर परदा है..."
उनकी आँखें खुली तो हैं, लेकिन हक़ देखने की सलाहियत (ability) उनसे छिन ली गई है।
यानी वो क़ुरआन, नबी की सीरत और अल्लाह की निशानियाँ देखकर भी कुछ नहीं समझते।

👉 ये सब कुछ अल्लाह की सज़ा के तौर पर होता है — क्योंकि उन्होंने खुद बार-बार सच को नकारा

"...और उनके लिए सख़्त अज़ाब है"

इन लोगों को आख़िरत में सख़्त अज़ाब (painful punishment) मिलेगा।
क्यों? क्योंकि:

  • उन्होंने जानबूझ कर ईमान को ठुकराया,
  • उन्होंने हिदायत को मज़ाक समझा,
  • और अपने नफ़्स (ego) को अल्लाह के हुक्म से बड़ा माना।

सीख:

  1. हक़ को जानकर इनकार करना बहुत बड़ा जुर्म है।
  2. अगर इंसान बार-बार सच को नकारे, तो अल्लाह भी उसके दिल पर मुहर लगा देता है
  3. ऐसे लोगों के लिए ना दुनिया में सुकून होता है, ना आख़िरत में नجات
  4. हमें चाहिए कि हर नसीहत को खुला दिल और दिमाग़ से सुनें — ताकि हिदायत के क़ाबिल बन सकें।

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