कुरान - 2:21 सूरह अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ ٱعۡبُدُواْ رَبَّكُمُ ٱلَّذِي خَلَقَكُمۡ وَٱلَّذِينَ مِن قَبۡلِكُمۡ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ

अनुवाद -

21. ऐ लोगो! अपने रब की इबादत करो [39] जिसने तुम्हें और तुमसे पहले लोगों को पैदा किया [40], ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ [41]।

सूरह आयत 21 तफ़सीर


[39] इबादत से पहले ईमान ज़रूरी है

👉 यह हुक्म पूरी इंसानियत को दिया गया है,
लेकिन इसमें यह भी छिपा है कि:
इबादत का हक़ वही अदा कर सकता है जो ईमान लाया हो

👉 जो लोग अल्लाह को नहीं मानते,
उनकी इबादत क़ुबूल नहीं होती
इसलिए असल पैग़ाम यह है:
"ऐ ग़ैर-मुस्लिमो! पहले अल्लाह को मानो — तभी तुम्हारी इबादत का मतलब होगा।"

[40] पैदा करने वाले का शुक्र और नसीब की अहमियत

👉 जब अल्लाह ने फ़रमाया:
"जिसने तुम्हें और तुमसे पहले वालों को पैदा किया"
तो यह हमें याद दिलाता है कि:

  • हमें अपने बुज़ुर्गों और पुरखों का एहतराम (सम्मान) करना चाहिए,
    क्योंकि हम उन्हीं की सिलसिला (कड़ी) हैं।

👉 और इससे बढ़कर —
हमें इस बात का शुक्र अदा करना चाहिए कि
हम उम्मत-ए-मुहम्मदी ﷺ में शामिल हुए
यह अल्लाह का बहुत बड़ा इनआम (इनाम) है।

[41] परहेज़गारी — इबादत का असली मक़सद

👉 अल्लाह फ़रमाता है:
"ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ"
यानी इबादत का मक़सद सिर्फ़ नमाज़ें या रोज़े नहीं,
बल्कि "तक़्वा" (अल्लाह का डर और होशियार रहना) हासिल करना है।

👉 यह कोई गारंटी नहीं, बल्कि उम्मीद है —
कि अगर तुम सच्चे दिल से इबादत करोगे,
तो शायद तक़्वा मिल जाए।

👉 लेकिन सिर्फ़ आमाल (काम) काफी नहीं —
असली तक़्वा दिल में तब उतरता है,
जब इंसान नेक लोगों की सोहबत (संगत) में रहता है।

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