21. ऐ लोगो! अपने रब की इबादत करो [39] जिसने तुम्हें और तुमसे पहले लोगों को पैदा किया [40], ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ [41]।
👉 यह हुक्म पूरी इंसानियत को दिया गया है,
लेकिन इसमें यह भी छिपा है कि:
इबादत का हक़ वही अदा कर सकता है जो ईमान लाया हो।
👉 जो लोग अल्लाह को नहीं मानते,
उनकी इबादत क़ुबूल नहीं होती।
इसलिए असल पैग़ाम यह है:
"ऐ ग़ैर-मुस्लिमो! पहले अल्लाह को मानो — तभी तुम्हारी इबादत का मतलब होगा।"
👉 जब अल्लाह ने फ़रमाया:
"जिसने तुम्हें और तुमसे पहले वालों को पैदा किया" —
तो यह हमें याद दिलाता है कि:
👉 और इससे बढ़कर —
हमें इस बात का शुक्र अदा करना चाहिए कि
हम उम्मत-ए-मुहम्मदी ﷺ में शामिल हुए।
यह अल्लाह का बहुत बड़ा इनआम (इनाम) है।
👉 अल्लाह फ़रमाता है:
"ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ" —
यानी इबादत का मक़सद सिर्फ़ नमाज़ें या रोज़े नहीं,
बल्कि "तक़्वा" (अल्लाह का डर और होशियार रहना) हासिल करना है।
👉 यह कोई गारंटी नहीं, बल्कि उम्मीद है —
कि अगर तुम सच्चे दिल से इबादत करोगे,
तो शायद तक़्वा मिल जाए।
👉 लेकिन सिर्फ़ आमाल (काम) काफी नहीं —
असली तक़्वा दिल में तब उतरता है,
जब इंसान नेक लोगों की सोहबत (संगत) में रहता है।
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सूरह आयत 21 तफ़सीर