सूरह अल-बकरा - हिन्दी अनुवाद, लिप्यंतरण, तफ्सीर - आयात [170-180] तक

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بِسۡمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحۡمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ

 

وَمَثَلُ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ كَمَثَلِ ٱلَّذِي يَنۡعِقُ بِمَا لَا يَسۡمَعُ إِلَّا دُعَآءٗ وَنِدَآءٗۚ صُمُّۢ بُكۡمٌ عُمۡيٞ فَهُمۡ لَا يَعۡقِلُونَ

उन लोगों का उदाहरण जिन्होंने कुफ़्र किया, उस व्यक्ति के उदाहरण जैसा है, जो उन जानवरों को पुकारता है, जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ[91] नहीं सुनते। वे बहरे हैं, गूँगे हैं, अंधे हैं, इसलिए वे नहीं समझते।

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُلُواْ مِن طَيِّبَٰتِ مَا رَزَقۡنَٰكُمۡ وَٱشۡكُرُواْ لِلَّهِ إِن كُنتُمۡ إِيَّاهُ تَعۡبُدُونَ

ऐ ईमान वालो! उन पवित्र चीज़ों में से खाओ, जो हमने तुम्हें प्रदान की हैं तथा अल्लाह का शुक्र अदा करो, यदि तुम केवल उसी की इबादत करते हो।

إِنَّمَا حَرَّمَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡمَيۡتَةَ وَٱلدَّمَ وَلَحۡمَ ٱلۡخِنزِيرِ وَمَآ أُهِلَّ بِهِۦ لِغَيۡرِ ٱللَّهِۖ فَمَنِ ٱضۡطُرَّ غَيۡرَ بَاغٖ وَلَا عَادٖ فَلَآ إِثۡمَ عَلَيۡهِۚ إِنَّ ٱللَّهَ غَفُورٞ رَّحِيمٌ

उस (अल्लाह) ने तो तुमपर केवल मुर्दार[92] और ख़ून और सूअर का माँस और हर वह चीज़ हराम की है, जिसपर ग़ैरुल्लाह (अल्लाह के अलावा) का नाम पुकारा जाए। फिर जो (इनमें से कोई चीज़ खाने पर) विवश हो जाए, इस हाल में कि वह न अवज्ञा करने वाला हो और न सीमा से आगे बढ़ने वाला, तो उसपर कोई दोष नहीं। निःसंदेह अल्लाह अति क्षमाशील, अत्यंत दयावान् है।[93]

إِنَّ ٱلَّذِينَ يَكۡتُمُونَ مَآ أَنزَلَ ٱللَّهُ مِنَ ٱلۡكِتَٰبِ وَيَشۡتَرُونَ بِهِۦ ثَمَنٗا قَلِيلًا أُوْلَـٰٓئِكَ مَا يَأۡكُلُونَ فِي بُطُونِهِمۡ إِلَّا ٱلنَّارَ وَلَا يُكَلِّمُهُمُ ٱللَّهُ يَوۡمَ ٱلۡقِيَٰمَةِ وَلَا يُزَكِّيهِمۡ وَلَهُمۡ عَذَابٌ أَلِيمٌ

निःसंदेह जो लोग छिपाते हैं जो अल्लाह ने किताब में से उतारा है और उसके बदले थोड़ा मूल्य प्राप्त करते हैं, वे लोग अपने पेटों में आग के सिवा कुछ नहीं खा रहे। तथा न अल्लाह क़ियामत के दिन उनसे बात करेगा और न उन्हें पाक करेगा और उनके लिए दुःखदायी यातना है।

أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ ٱشۡتَرَوُاْ ٱلضَّلَٰلَةَ بِٱلۡهُدَىٰ وَٱلۡعَذَابَ بِٱلۡمَغۡفِرَةِۚ فَمَآ أَصۡبَرَهُمۡ عَلَى ٱلنَّارِ

यही लोग हैं, जिन्होंने हिदायत के बदले गुमराही तथा क्षमा के बदले यातना ख़रीद ली। तो वे आग पर कितना अधिक सब्र करने वाले हैं?

ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ نَزَّلَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِي ٱلۡكِتَٰبِ لَفِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ

यह (यातना) इस कारण है कि निःसंदेह अल्लाह ने यह पुस्तक सत्य के साथ उतारी है, और निःसंदेह जिन लोगों ने पुस्तक में मतभेद किया है, निश्चय वे बहुत दूर के विरोध में (पड़े) हैं।

۞لَّيۡسَ ٱلۡبِرَّ أَن تُوَلُّواْ وُجُوهَكُمۡ قِبَلَ ٱلۡمَشۡرِقِ وَٱلۡمَغۡرِبِ وَلَٰكِنَّ ٱلۡبِرَّ مَنۡ ءَامَنَ بِٱللَّهِ وَٱلۡيَوۡمِ ٱلۡأٓخِرِ وَٱلۡمَلَـٰٓئِكَةِ وَٱلۡكِتَٰبِ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ وَءَاتَى ٱلۡمَالَ عَلَىٰ حُبِّهِۦ ذَوِي ٱلۡقُرۡبَىٰ وَٱلۡيَتَٰمَىٰ وَٱلۡمَسَٰكِينَ وَٱبۡنَ ٱلسَّبِيلِ وَٱلسَّآئِلِينَ وَفِي ٱلرِّقَابِ وَأَقَامَ ٱلصَّلَوٰةَ وَءَاتَى ٱلزَّكَوٰةَ وَٱلۡمُوفُونَ بِعَهۡدِهِمۡ إِذَا عَٰهَدُواْۖ وَٱلصَّـٰبِرِينَ فِي ٱلۡبَأۡسَآءِ وَٱلضَّرَّآءِ وَحِينَ ٱلۡبَأۡسِۗ أُوْلَـٰٓئِكَ ٱلَّذِينَ صَدَقُواْۖ وَأُوْلَـٰٓئِكَ هُمُ ٱلۡمُتَّقُونَ

नेकी केवल यही नहीं कि तुम अपने मुँह पूर्व और पश्चिम की ओर फेर लो! बल्कि असल नेकी तो उसकी है, जो अल्लाह और अंतिम दिन (आख़िरत) और फ़रिश्तों और पुस्तकों और नबियों पर ईमान लाए, और धन दे उसके मोह के बावजूद रिशतेदारों और अनाथों और निर्धनों और यात्री तथा माँगने वालों को और गर्दनें छुड़ाने में, और नमाज़ क़ायम करे और ज़कात दे, और जो अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने वाले हैं जब प्रतिज्ञा करें, और जो तंगी और कष्ट में और लड़ाई के समय धैर्य रखने वाले हैं। यही लोग हैं जो सच्चे सिद्ध हुए तथा यही (अल्लाह से) डरने वाले हैं।[94]

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِصَاصُ فِي ٱلۡقَتۡلَىۖ ٱلۡحُرُّ بِٱلۡحُرِّ وَٱلۡعَبۡدُ بِٱلۡعَبۡدِ وَٱلۡأُنثَىٰ بِٱلۡأُنثَىٰۚ فَمَنۡ عُفِيَ لَهُۥ مِنۡ أَخِيهِ شَيۡءٞ فَٱتِّبَاعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَأَدَآءٌ إِلَيۡهِ بِإِحۡسَٰنٖۗ ذَٰلِكَ تَخۡفِيفٞ مِّن رَّبِّكُمۡ وَرَحۡمَةٞۗ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ بَعۡدَ ذَٰلِكَ فَلَهُۥ عَذَابٌ أَلِيمٞ

ऐ ईमान वालो! तुमपर क़त्ल किए गए व्यक्तियों के बारे में क़िसास (बदला लेना) फ़र्ज़ (अनिवार्य)[95] कर दिया गया है। आज़ाद के बदले आज़ाद, ग़ुलाम के बदले ग़ुलाम और औरत के बदले औरत (को क़त्ल किया जाएगा)। फिर जिसे उसके भाई की ओर से कुछ भी क्षमा[96] कर दिया जाए, तो ऐसे में सामान्य रीति के अनुसार (क़ातिल का) अनुसरण करना चाहिए और भले तरीक़े से उसके पास पहुँचा देना चाहिए। यह तुम्हारे पालनहार की ओर से एक प्रकार की सुविधा तथा एक दया है। फिर जो इसके बाद अत्याचार[97] करे, तो उसके लिए दर्दनाक यातना है।

وَلَكُمۡ فِي ٱلۡقِصَاصِ حَيَوٰةٞ يَـٰٓأُوْلِي ٱلۡأَلۡبَٰبِ لَعَلَّكُمۡ تَتَّقُونَ

और ऐ बुद्धि वालो! तुम्हारे लिए क़िसास (बदला) लेने में जीवन है, ताकि तुम तक़वा अपनाओ।[98]

كُتِبَ عَلَيۡكُمۡ إِذَا حَضَرَ أَحَدَكُمُ ٱلۡمَوۡتُ إِن تَرَكَ خَيۡرًا ٱلۡوَصِيَّةُ لِلۡوَٰلِدَيۡنِ وَٱلۡأَقۡرَبِينَ بِٱلۡمَعۡرُوفِۖ حَقًّا عَلَى ٱلۡمُتَّقِينَ

और जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ पहुँचे और वह धन छोड़ रहा हो, तो उसपर माता-पिता और रिश्तेदारों के लिए अच्छे तरीक़े से वसिय्यत करना ज़रूरी कर दिया गया है। यह अल्लाह से डरने वालों पर सुनिश्चित (आवश्यक)[99] है।

Surah hindi Translation and Transliteration

In Surah you can read the translation of Ahmad Raza Khan who was a renowned scholar of the Islamic world and his translation book is known as Kanzul Imaan. You can read the transliteration of Surah which will help you to understand how to read the Arabic text. Apart from that, we have included a Word-By-Word hindi Translation of the Arabic text of Surah .

Surah hindi Tafsir/Tafseer (Commentry)

In Surah we have included two Tafseer (Commentary) in hindi. The first one is from Mufti Ahmad Yaar Khan who was a well-known scholar. In this tafsir, we have also included the most popular Tafsir Ibn-Kathir which is the most comprehensive tafsir available in the world. You can read both or any one of your choice.

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