कह दो [1]: "मैं (मुहम्मद) लोगों के रब की पनाह मांगता हूँ" [2]।
ऐ मेरे प्यारे नबी ﷺ! इसे अपनी मुबारक ज़बान से फरमाइए, ताकि इस दुआ की तासीर के साथ-साथ आपकी पाक ज़बान का असर भी ज़ाहिर हो।
जब आप इजाज़त दें, तभी बाक़ी मोमिन भी इसे कह सकें। जैसे बंदूक बिना गोली के नहीं चलती, वैसे ही दुआ बिना पाक ज़बान के असर नहीं करती।
अगर आप चाहते हैं कि दुआ में असर हो, तो पहले खुद को पाक करें।
या फिर पाक और नेक बंदों से दुआ करवाएँ, या उनसे इजाज़त लेकर उनकी दुआ को अपनाएँ।
अल्लाह तआला पूरी मख़लूक का रब है, लेकिन चूंकि इंसान सबसे अशरफ़ (श्रेष्ठ) मख़लूक हैं, इसलिए इन्हें ख़ास तौर पर ज़िक्र किया गया।
याद रहे, रब वह होता है जो ख़ुद-बख़ुद मौजूद हो, हर जगह, हर समय, बे-नियाज़ हो, और हर हाल में हिफ़ाज़त फरमाए — चाहे आलम-ए-अरवाह हो, दुनिया हो, क़ब्र हो या आख़िरत, अल्लाह की पनाह हर जगह हाज़िर है।
अरबी लफ़्ज़ "अब्ब" (पिता) अक्सर उस शख़्स को कहा जाता है जो सीमित वक्त तक परवरिश करता है और अक्सर अपने फायदे के लिए।
इसलिए अल्लाह को "रब" कहा गया है, "पिता" नहीं।
इंसान को बचपन में सिर्फ सीमित हिफ़ाज़त मिलती है, इसलिए सबसे पहले इस सिफ़त को बयान किया गया।
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सूरह अन-नास आयत 1 तफ़सीर