कुरान - 1:5 सूरह अल-फ़ातिहा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

إِيَّاكَ نَعۡبُدُ وَإِيَّاكَ نَسۡتَعِينُ

अनुवाद -

हम सिर्फ़ तुझी को इबादत करते हैं [6], और तुझी से मदद माँगते हैं [7]।

सूरह अल-फ़ातिहा आयत 5 तफ़सीर


📖 सूरह अल-फ़ातिहा – आयत 5 का हिन्दी अनुवाद और तफ़्सीर

✅ [6] केवल अल्लाह की इबादत

इस आयत में “हम इबादत करते हैं” को बहुवचन (plural) में कहा गया है — इससे इस्लाम में सामूहिक इबादत (जमा'अत की नमाज़) की अहमियत झलकती है। यह बताता है कि फ़र्ज़ नमाज़ें जमा'अत के साथ अदा करना बेहतर और प्रिय है। अगर एक शख़्स की नमाज़ भी क़बूल हो जाए, तो पूरी जमा'अत को उसकी बरकत मिल सकती है

इबादत चाहे नमाज़ हो, रोज़ा, ज़कात या क़ुर्बानी — वह केवल अल्लाह ही के लिए होनी चाहिए।
अगर कोई इंसान इबादत को किसी और के लिए अर्पित करता है, भले ही सोच में हो, तो वह शिर्क कहलाता है, और इस्लाम में यह बिल्कुल ना-क़ाबिले-क़बूल है।

✅ [7] मदद माँगना — सीमाओं में जायज़

इस आयत का दूसरा भाग यह स्पष्ट करता है कि असल मदद, जैसे कि हिदायत, माफ़ी, निजात या क़िस्मत — सिर्फ़ अल्लाह ही से माँगी जा सकती है
जैसे इबादत सिर्फ़ अल्लाह के लिए है, वैसे ही पूर्ण भरोसा और तवक्कुल भी उसी पर होना चाहिए

हालाँकि:
दुनियावी या ज़ाहिरी मदद — जैसे बीमारी में डॉक्टर, परेशानी में दोस्त या अल्लाह के नेक बंदों और अंबिया (पैग़म्बरों) से वसीले (माध्यम) के तौर पर मदद लेना — जायज़ है,
इस शर्त पर कि:

  • उन्हें असली मददगार न माना जाए,
  • बल्कि उन्हें सिर्फ़ अल्लाह के बनाए हुए ज़रिया समझा जाए।

इसलिए आयत में “इबादत” और “मदद माँगने” को अलग किया गया, ताकि यह स्पष्ट रहे कि:

  • इबादत सिर्फ़ अल्लाह के लिए,
  • और मदद भी उसी से — चाहे वसीले से ही क्यों न हो

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