अहले-किताब और मुशरिक दोनों काफ़िर हैं और दोज़ख़ में हमेशा रहेंगे। मगर उनके कुफ़्र की तासीर के मुताबिक़ उनकी सज़ा में फर्क होगा:
दोज़ख़ का दर्जाबंदी:
हल्की सज़ा: अहले-किताब के घमंडी उलमा दोज़ख़ के ऊपरी हिस्से में रहेंगे।
सख़्त सज़ा: ज़िद्दी मुशरिक दोज़ख़ के गहरे हिस्से में यातना झेलेंगे।
क़ुरआन कहता है:
إِنَّ الْمُجْرِمِينَ فِي عَذَابِ جَهَنَّمَ خَالِدُونَ
"गुनहगार दोज़ख़ की आग में हमेशा रहेंगे।" (सूरह अज़-ज़ुख़रुफ़ 43:74)
घमंड की मज़म्मत:
अहले-किताब को नबियों के नस्ल और किताबों का घमंड था, मगर पैग़म्बर (सल्ल.) को नहीं माना।
मुशरिक को काबा की ख़िदमत और इब्राहीम (अलै.) के नस्ल पर नाज़ था, मगर बुतपरस्ती करते रहे।
क़ुरआन का जवाब:
إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّـهِ أَتْقَاكُمْ
"अल्लाह की नज़र में सबसे बड़ा इज़्ज़त वाला वह है जो सबसे ज़्यादा परहेज़गार हो।" (सूरह अल-हुजुरात 49:13)
बेकार नस्ल और इल्म:
नस्ल और इल्म सिर्फ़ मोमिनों के काम आते हैं। काफ़िरों के लिए ये सिर्फ़ शर्मिंदगी का सबब बनेंगे।
काफ़िरों को क़यामत के बाद दोज़ख़ में डाला जाएगा, मगर क़ुरआन उन्हें "दोज़ख़ में" कहकर उनके हालात को बयान करता है:
कुछ अपवाद:
अबू तालिब जैसे लोग (जिन्होंने पैग़म्बर (सल्ल.) की हिफ़ाज़त की मगर ईमान नहीं लाए) दोज़ख़ के "ठंडे इलाक़े" में रहेंगे, जहाँ आग की तपिश कम होगी।
क़ुरआन का उसूल:
إِنَّ اللَّـهَ لَا يَظْلِمُ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ
"अल्लाह ज़र्रा भर भी ज़ुल्म नहीं करता।" (सूरह अन-निसा 4:40)
आग सबके लिए:
हर काफ़िर आग में जलेगा, बस किसी के पास आग होगी, किसी से दूर।
अहले-किताब और मुशरिकों को क़ुरआन ने सबसे नीच मख़्लूक़ (जैसे कुत्ते, सूअर) बताया है:
मिसाली तुलना:
أُولَـٰئِكَ كَالْأَنْعَامِ بَلْ هُمْ أَضَلُّ
"वे जानवरों जैसे हैं, बल्कि उनसे भी गुमराह।" (सूरह अल-आराफ़ 7:179)
रहमत से महरूमी:
नूह (अलै.) की किश्ती में सारे जानवर तो सवार हुए, मगर काफ़िर नहीं। ये दिखाता है कि नस्ल या हैसियत बिना ईमान के बेकार है।
अहद-ए-इलाही के ग़द्दार:
जानवर तो बेज़ार नहीं, मगर काफ़िर जान-बूझकर हक़ को ठुकराते हैं। इसलिए वे शर्रुल बरीय्या (सबसे बुरी मख़्लूक़) हैं।
ईमान ही असल चीज़: नस्ल या दुनियावी शान बिना ईमान के कुछ नहीं।
इंसाफ़ का दर्जाबंदी: दोज़ख़ की सज़ा में हर शख़्स के गुनाह के मुताबिक़ फर्क होगा।
आख़िरत का अंजाम: कुफ़्र इंसान को अल्लाह की रहमत से हमेशा के लिए महरूम कर देता है।
इसलिए, सच्चाई को ठुकराने वाले न सिर्फ़ दुनिया में शर्मसार होंगे, बल्कि आख़िरत में भी सबसे बुरी सज़ा भुगतेंगे।
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Surah Ayat 6 Tafsir