جَزَآؤُهُمۡ عِندَ رَبِّهِمۡ جَنَّـٰتُ عَدۡنٖ تَجۡرِي مِن تَحۡتِهَا ٱلۡأَنۡهَٰرُ خَٰلِدِينَ فِيهَآ أَبَدٗاۖ رَّضِيَ ٱللَّهُ عَنۡهُمۡ وَرَضُواْ عَنۡهُۚ ذَٰلِكَ لِمَنۡ خَشِيَ رَبَّهُۥ

Surah Ayat 8 Tafsir


13. दुनियावी इम्तिहान और आख़िरत के इनाम

इस आयत से ये अहम बातें सामने आती हैं:

दुनिया की नेमतें: इम्तिहान, इनाम नहीं

दौलत, सेहत, और शोहरत जैसी चीज़ें अल्लाह की तरफ़ से इम्तिहान या रिज़्क़ (जीविका) हैं। मुसीबतें भी इंसान के दर्जे को बुलंद करने का ज़रिया हैं।
क़ुरआन कहता है:
وَابْتَغِ فِيمَا آتَاكَ اللَّـهُ الدَّارَ الْآخِرَةَ
"अल्लाह ने जो कुछ दिया है, उससे आख़िरत का घर तलाश करो।" (सूरह अल-क़सस 28:77)

आख़िरत के इनाम: नेकी की फ़सल

जन्नत की ख़ुशी पाने के लिए सच्चा ईमान और नेक अमल ज़रूरी हैं।
मिसाल: "अगर आख़िरत में अच्छा चाहो, तो दुनिया में अच्छे बीज बोओ।"

दुनिया: एक फ़ानी मंच

दुनिया एक अस्थायी इम्तिहानगाह है, जबकि जन्नत असली और हमेशा का घर (दारुल-क़रार) है।
मिसाल: जैसे खनिजों का असली घर खानें होती हैं, वैसे ही इंसान का असली घर जन्नत है।

जन्नत की हमेशगी

जन्नत में दाख़िल होने के बाद वहाँ से निकाला नहीं जाएगा। मौत भी नहीं आएगी।
तफ़सील: हज़रत आदम (अलै.) का जन्नत में रहना और पैग़म्बर (सल्ल.) का मेराज की रात जन्नत देखना सिर्फ़ एक झलक थी, इनाम नहीं।

अल्लाह की रज़ा: सबसे बड़ा इनाम

رَّضِيَ اللَّـهُ عَنْهُمْ وَرَضُوا عَنْهُ
"अल्लाह उनसे राज़ी, और वे उससे राज़ी।" (सूरह अल-बय्यिना 98:8)

रज़ा-ए-इलाही सबसे बुलंद नेमत

अल्लाह की रज़ा जन्नत की सारी नेमतों से बढ़कर है। नबियों और शहीदों (जैसे इब्राहीम, हुसैन रज़ि.) ने दुनिया की चीज़ों को छोड़कर इसी को तरजीह दी।
मिसाल: मुसलमान सिपाही शहादत इसलिए चाहते हैं ताकि अल्लाह की रज़ा हासिल कर सकें।

एहसान, न कि लेन-देन

अल्लाह का दीदार (रुयतुल्लाह) और उसकी रज़ा इंसान के अमल का "बदला" नहीं, बल्कि उसका ख़ास एहसान है।

रज़ा की निशानियाँ:

नेकी की तौफ़ीक़ मिलना।

लोगों के दिलों में मोहब्बत।

फ़रिश्तों की दुआ।

इंसान की ख़ुशी की निशानियाँ:

तक़लीफ़ और आराम दोनों में अल्लाह से राज़ी रहना।

अल्लाह के हुक्मों को दिल से मानना।

15. अल्लाह का ख़ौफ़: मोहब्बत वाला डर

مَنْ خَشِيَ الرَّحْمَـٰنَ بِالْغَيْبِ
"जो ग़ैब में रहमान से डरता है।" (सूरह क़ाफ 50:33)

ख़ौफ़ की क़िस्में

नुक़सान का डर (जैसे बिच्छू से डर): नफ़रत पैदा करता है।

ज़ुल्म का डर (जैसे ज़ालिम बादशाह से डर): बेइंसाफ़ी से पैदा होता है।

मोहब्बत का डर (जैसे बच्चे का प्यारे बाप से डर): इताअत (आज्ञापालन) सिखाता है।

असली ख़ौफ़-ए-इलाही:

मोहब्बत वाला डर: ईमान जितना मज़बूत, डर उतना गहरा।

नतीजे:

मख़्लूक़ात (लोगों) का डर ख़त्म।

मख़्लूक़ात भी उससे डरने लगे।

नेक लोगों के लिए इज़्ज़त

रज़ियल्लाहु अन्हु (अल्लाह उससे राज़ी हो) जैसे शब्द सभी नेक लोगों के लिए इस्तेमाल हो सकते हैं, सिर्फ़ सहाबा तक सीमित नहीं।

क़ुरआन कहता है:
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ أُولَـٰئِكَ هُمْ خَيْرُ الْبَرِيَّةِ
"जो ईमान लाए और नेक अमल किए, वे सबसे बेहतरीन मख़्लूक़ हैं।" (सूरह अल-बय्यिना 98:7)

ख़ुलासा

दुनिया vs आख़िरत: दुनिया इम्तिहान है, असली कामयाबी अल्लाह की रज़ा में है।

रज़ा-ए-इलाही: सभी नेमतों से ऊपर।

सही ख़ौफ़: मोहब्बत से भरा डर जो दिल को आज़ाद कर दे।

इज़्ज़त सबके लिए: तक़्वा हर मोमिन को बुलंद बनाता है।

ये क़ुरआन का पैग़ाम है: जो सच्चाई को अपनाएगा, वही दुनिया और आख़िरत में कामयाब होगा।

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