“ऐ ईमान वालों! जब तुम नमाज़ के लिए खड़े होने लगो [37], तो अपने चेहरे और हाथों को कुहनियों तक धो लो, और अपने सिरों का मसह करो, और पाँवों को टखनों तक धो लो [38]। और अगर तुम जनाबत (संभोग या स्वप्नदोष) की हालत में हो [39], तो पूरे बदन को अच्छी तरह पाक करो। और अगर तुम बीमार हो, या सफर में हो, या कोई शौच से आए [40], या औरतों को छू लिया हो, और तुम्हें पानी न मिले [41], तो पाक मिट्टी से तयम्मुम करो [42] — अपने चेहरे और हाथों पर मसह कर लो। अल्लाह तुम्हें मुश्किल में डालना नहीं चाहता, बल्कि चाहता है कि तुम्हें पाक बनाए और अपनी नेमत को तुम पर पूरा कर दे, ताकि तुम शुक्र अदा करो।”
(क़ुरआन का तर्जुमा: कन्ज़ुल ईमान)
यहाँ "खड़े हो" से मुराद नमाज़ में खड़ा होना नहीं, बल्कि नमाज़ की तैयारी (यानि वुज़ू करना) है। इसीलिए आयत में कहा गया: "नमाज़ के लिए", न कि "नमाज़ में"।
तयम्मुम की अनुमति तब है जब:
🔹 उदाहरण: हज़रत इमाम हुसैन (र.अ.) ने कर्बला में तयम्मुम से नमाज़ पढ़ी, क्योंकि फ़ुरात नदी पास होते हुए भी दुश्मन ने पानी तक पहुँचने नहीं दिया।
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सूरह अल-मायदा आयत 6 तफ़सीर