कुरान - 5:8 सूरह अल-मायदा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

يَـٰٓأَيُّهَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُونُواْ قَوَّـٰمِينَ لِلَّهِ شُهَدَآءَ بِٱلۡقِسۡطِۖ وَلَا يَجۡرِمَنَّكُمۡ شَنَـَٔانُ قَوۡمٍ عَلَىٰٓ أَلَّا تَعۡدِلُواْۚ ٱعۡدِلُواْ هُوَ أَقۡرَبُ لِلتَّقۡوَىٰۖ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَۚ إِنَّ ٱللَّهَ خَبِيرُۢ بِمَا تَعۡمَلُونَ

अनुवाद -

"ऐ ईमान वालों! अल्लाह की राह में डटकर न्याय के साथ गवाही देने वाले बनो [46], और किसी क़ौम की दुश्मनी तुम्हें इस बात पर न उकसाए कि तुम इंसाफ़ न करो। इंसाफ़ करो – यही परहेज़गारी से अधिक क़रीब है [47], और अल्लाह से डरो। बेशक अल्लाह तुम्हारे कामों से खूब वाक़िफ़ है।"

सूरह अल-मायदा आयत 8 तफ़सीर


📖 सूरा अल-माइदा – आयत 8 की तफ़्सीर

 

✅ [46] इंसाफ़ के साथ गवाही देने का मतलब

  • “मजबूती से खड़े रहो” — इसका मतलब है:
    • हर हाल में इंसाफ़ को कायम रखना, चाहे मामला ख़ुद का हो, रिश्तेदार का हो, या दुश्मन का
    • अगर इंसान अपने गुनाहों को माने, रिश्तेदारों के हक़ अदा करे, और अल्लाह की इबादत में वफ़ादार रहे, तो वह सच्चा न्यायप्रिय है।
    • यह हुक्म सीमित नहीं, बल्कि हर जगह लागू होता है – जब भी इंसाफ़ की ज़रूरत हो।

✅ [47] इंसाफ़ ही परहेज़गारी की राह है

  • यह आयत बताती है कि:
    • रिश्तेदार हो या अजनबी, मुसलमान हो या गैर-मुसलमान, इंसाफ़ में सब बराबर हैं
    • इंसाफ़ करना ही परहेज़गारी (taqwa) के सबसे क़रीब है।
  • इस आयत की तफ़्सीर हज़रत मुहम्मद ﷺ के फैसलों में भी दिखाई देती है:
    • कई बार आपने ﷺ ने काफ़िरों के हक़ में फैसला दिया और मुसलमानों के ख़िलाफ़, क्योंकि इंसाफ़ ही मक़सद था, न कि पक्षपात।

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