कुरान - 4:100 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

۞وَمَن يُهَاجِرۡ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ يَجِدۡ فِي ٱلۡأَرۡضِ مُرَٰغَمٗا كَثِيرٗا وَسَعَةٗۚ وَمَن يَخۡرُجۡ مِنۢ بَيۡتِهِۦ مُهَاجِرًا إِلَى ٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ ثُمَّ يُدۡرِكۡهُ ٱلۡمَوۡتُ فَقَدۡ وَقَعَ أَجۡرُهُۥ عَلَى ٱللَّهِۗ وَكَانَ ٱللَّهُ غَفُورٗا رَّحِيمٗا

अनुवाद -

यह और जो कोई अल्लाह की राह में हिजरत करेगा [315] वह ज़मीन में बहुत जगह और सुकून पाएगा [316] और जो कोई अपने घर से अल्लाह और उसके रसूल के लिए हिजरत करते हुए निकले, फिर उसे मौत आ जाए, तो उसका अज्र अल्लाह के जिम्मे हो गया [317] और अल्लाह हमेशा दरगुज़र करने वाला, रहमत करने वाला है

सूरह अन-निसा आयत 100 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 100 की तफ़्सीर

 

✅ [315] अल्लाह की राह में हिजरत – ख़ास संदर्भ

यहाँ अल्लाह की राह में हिजरत से मुराद मक्का से मदीना की हिजरत है, जब हिजरत मुसलमानों पर फ़र्ज़ थी। उस समय यह वादा ख़ास तौर पर मुहाजिरीन-ए-मक्का के लिए था। बाद में जो लोग हिजरत करें और उन्हें दुनियावी सुकून न मिले, तो यह आयत उनसे ख़िलाफ़ नहीं, क्योंकि अल्लाह ने शुरुआती मुहाजिरीन के बारे में यह वादा पूरा कर दिया था।

✅ [316] ज़मीन में बहुत जगह और सुकून

ज़मीन में बहुत जगह और सुकून से मुराद वह आज़ादी, अमन और बरकत है जो मदीना में मुहाजिरीन को मिली। यह वादा उस वक़्त के लिए था, मगर रूहानी सबक हर दौर में है कि जब कोई अमल सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल ﷺ के लिए किया जाए, तो उसका अज्र और असर बढ़ जाता है। अल्लाह के लिए नीयत में रसूल ﷺ का ज़िक्र शिर्क नहीं बल्कि मोहब्बत और फ़ज़ीलत की निशानी है।

✅ [317] वजह-ए-नुज़ूल – हज़रत जुंदअ बिन दमीरह लईसी

यह आयत हज़रत जुंदअ बिन दमीरह लईसी के बारे में उतरी। उन्होंने पिछली आयत सुनकर कहा कि मैं मालदार और क़ाबिल हूँ, अपाहिज नहीं, मैं मक्का में एक रात भी और नहीं रुकूँगा। कमज़ोरी के कारण उन्हें बिस्तर पर ले जाया गया। न'ईम नाम की जगह पर मौत के आसार आए, तो उन्होंने अपना हाथ ऐसे मिलाया जैसे रसूल ﷺ से बैअत कर रहे हों और कहा कि ऐ अल्लाह, यह मेरा हाथ तेरे रसूल ﷺ के हाथ में है। उसी वक़्त उनका इंतिक़ाल हो गया।

✅ सबक़ और पैग़ाम

नीयत का अज्र यह है कि जो नेक अमल का पक्का इरादा करे और मजबूरी से पूरा न कर सके, उसे पूरा अज्र मिलेगा। हिजरत में दीन की तालीम के लिए सफ़र, हज, मदीना की ज़ियारत और हलाल रोज़ी के लिए सफ़र भी शामिल हैं। हज़रत जुंदअ की तरह इशारतन बैअत भी क़बूल है अगर दिल में सच्चाई हो। जो दीनी अमल की हालत में मौत पाए, वह उसी अमल वालों के साथ उठाया जाएगा। उस दौर में मक्का में रहना मना था क्योंकि रसूल ﷺ मदीना में थे, जिससे पता चला कि हर मुक़द्दस जगह की असल बरकत रसूल ﷺ की मौजूदगी से है।

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