जो कोई अच्छी सिफ़ारिश करे तो उसका भी उसमें हिस्सा है [270] और जो कोई बुरी सिफ़ारिश करे तो उसका भी उसमें हिस्सा है [271] और अल्लाह हर चीज़ पर क़ादिर है।
इससे पता चलता है कि अच्छी सिफ़ारिश करना—जैसे किसी मुश्किल में फंसे को मदद देना या किसी हक़दार का साथ देना—एक नेक अमल है और इसका इनाम मिलता है। बेगुनाह की हिफ़ाज़त या हक़ में सहायता करना, शफ़ाअत करने वाले के लिए अल्लाह की तरफ़ से अज्र का कारण बनता है।
यह आयत यह भी सिखाती है कि गलत काम करना ही नहीं, बल्कि दूसरों को उस पर उकसाना, सलाह देना या उसकी ख़्वाहिश पैदा करना भी गुनाह है। इसी तरह नेक़ी और भलाई फैलाना—भले इंसान ख़ुद न करे—इनाम का सबब है, जैसे बुराई फैलाना गुनाह का कारण है। अल्लाह हर नियत, हर अमल और उसके अंजाम को जानता है और उसी के मुताबिक़ फ़ैसला करेगा।
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सूरह अन-निसा आयत 86 तफ़सीर