अगर तुम कोई भलाई ज़ाहिर कर दो या छुपाकर करो, या किसी की बुराई को माफ़ कर दो [433], तो निस्संदेह अल्लाह माफ़ करने वाला, बड़ी क़ुदरत वाला है।
इस आयत से हमें यह समझ मिलता है कि भलाई चाहे खुले तौर पर की जाए या छुपाकर, दोनों ही अल्लाह के नज़दीक क़ीमती हैं — बशर्ते नियत पाक हो। ज़ाहिर भलाई की मिसालें हैं: जुमा की नमाज़, ईद की नमाज़, हज आदि — जो कि समाज में खुले आम अदा की जाती हैं और इनका इज़हार ही इनकी खूबी है। वहीं छुपी हुई भलाई की मिसालें हैं: तहज्जुद की नमाज़, छुपकर दी गई सदक़ा, या किसी से ख़ामोशी से की गई नेकी — ये सब दिखावे से पाक होती हैं और इख़लास (सच्ची नियत) की पहचान होती हैं।
"या किसी की बुराई को माफ़ कर दो" — इस वाक्य से हमें यह तालीम मिलती है कि शख़्सी तौर पर किए गए ज़ुल्म या नुक़सान को माफ़ करना अल्लाह को बहुत पसंद है। यह बड़प्पन और अल्लाह के क़रीब होने की निशानी है। लेकिन:
आयत के आख़िर में अल्लाह की दो सिफ़तों का ज़िक्र है:
इस आयत में नेकियों को फैलाने, दिखावे से बचने, और दूसरों को माफ़ करने की तालीम दी गई है — लेकिन यह भी बताया गया है कि अल्लाह की रहमत कमज़ोरी नहीं, बल्कि उसकी ताक़त की अलामत है।
For a faster and smoother experience,
install our mobile app now.
सूरह अन-निसा आयत 149 तफ़सीर