कुरान - 4:149 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

إِن تُبۡدُواْ خَيۡرًا أَوۡ تُخۡفُوهُ أَوۡ تَعۡفُواْ عَن سُوٓءٖ فَإِنَّ ٱللَّهَ كَانَ عَفُوّٗا قَدِيرًا

अनुवाद -

अगर तुम कोई भलाई ज़ाहिर कर दो या छुपाकर करो, या किसी की बुराई को माफ़ कर दो [433], तो निस्संदेह अल्लाह माफ़ करने वाला, बड़ी क़ुदरत वाला है।

सूरह अन-निसा आयत 149 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 149 की तफ़्सीर

 

✅ [433] ज़ाहिर और छुपी हुई भलाई — दोनों क़ीमती हैं

इस आयत से हमें यह समझ मिलता है कि भलाई चाहे खुले तौर पर की जाए या छुपाकर, दोनों ही अल्लाह के नज़दीक क़ीमती हैं — बशर्ते नियत पाक हो। ज़ाहिर भलाई की मिसालें हैं: जुमा की नमाज़, ईद की नमाज़, हज आदि — जो कि समाज में खुले आम अदा की जाती हैं और इनका इज़हार ही इनकी खूबी है। वहीं छुपी हुई भलाई की मिसालें हैं: तहज्जुद की नमाज़, छुपकर दी गई सदक़ा, या किसी से ख़ामोशी से की गई नेकी — ये सब दिखावे से पाक होती हैं और इख़लास (सच्ची नियत) की पहचान होती हैं।

✅ माफ़ करना — लेकिन हद के साथ

"या किसी की बुराई को माफ़ कर दो" — इस वाक्य से हमें यह तालीम मिलती है कि शख़्सी तौर पर किए गए ज़ुल्म या नुक़सान को माफ़ करना अल्लाह को बहुत पसंद है। यह बड़प्पन और अल्लाह के क़रीब होने की निशानी है। लेकिन:

  • मज़हबी गुनाह,
  • कौमी ग़द्दारी,
  • या मुस्लिम उम्मत के खिलाफ़ की गई साज़िश — इन मामलों में माफ़ी का फ़ैसला फ़र्द का नहीं, बल्कि इस्लामी क़ानून का होता है। वहाँ इंसाफ़ ज़रूरी है।

✅ अल्लाह की दो महान सिफ़तें — माफ़ करने वाला और ताक़तवर

आयत के आख़िर में अल्लाह की दो सिफ़तों का ज़िक्र है:

  • ग़फ़ूर — यानी वह जो तौबा करने वालों को माफ़ करता है, और जब इंसान आपस में माफ़ी देते हैं, तो वह भी इस पर इनाम देता है।
  • क़दीर — यानी अल्लाह हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत रखता है। अगर चाहे तो सज़ा दे सकता है, लेकिन वह माफ़ करने वालों को माफ़ करके रहमत दिखाता है

इस आयत में नेकियों को फैलाने, दिखावे से बचने, और दूसरों को माफ़ करने की तालीम दी गई है — लेकिन यह भी बताया गया है कि अल्लाह की रहमत कमज़ोरी नहीं, बल्कि उसकी ताक़त की अलामत है

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