कुरान - 4:6 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

وَٱبۡتَلُواْ ٱلۡيَتَٰمَىٰ حَتَّىٰٓ إِذَا بَلَغُواْ ٱلنِّكَاحَ فَإِنۡ ءَانَسۡتُم مِّنۡهُمۡ رُشۡدٗا فَٱدۡفَعُوٓاْ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡۖ وَلَا تَأۡكُلُوهَآ إِسۡرَافٗا وَبِدَارًا أَن يَكۡبَرُواْۚ وَمَن كَانَ غَنِيّٗا فَلۡيَسۡتَعۡفِفۡۖ وَمَن كَانَ فَقِيرٗا فَلۡيَأۡكُلۡ بِٱلۡمَعۡرُوفِۚ فَإِذَا دَفَعۡتُمۡ إِلَيۡهِمۡ أَمۡوَٰلَهُمۡ فَأَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِمۡۚ وَكَفَىٰ بِٱللَّهِ حَسِيبٗا

अनुवाद -

और अनाथों की परीक्षा लो [18] जब तक कि वे विवाह योग्य उम्र को न पहुँच जाएँ। फिर यदि तुम उनमें समझदारी पाओ, तो उनका माल उन्हें लौटा दो [19], और उसे फ़ुज़ूलखर्ची या जल्दबाज़ी से मत खाओ, इस डर से कि वे बड़े हो जाएँगे [20]। और यदि संरक्षक (वसी) मालदार हो, तो उसे बचना चाहिए, लेकिन यदि वह ग़रीब हो, तो उचित और न्यायपूर्ण तरीक़े से खा सकता है [21]। और जब तुम उन्हें उनका माल दो, तो गवाह बना लो [22], और अल्लाह हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।

सूरह अन-निसा आयत 6 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 6 की तफ़्सीर

 

✅ [18] अनाथों की परीक्षा लेने का हुक्म

"परीक्षा लेने" का मतलब है कि उन्हें थोड़ा सा माल देकर ख़रीदारी के लिए भेजा जाए, ताकि देखा जा सके कि क्या वे समझदारी और सूझबूझ से माल का इस्तेमाल करते हैं या नहीं। इससे यह शिक्षा मिलती है कि असली अक़्ल खर्च करने में है, न कि केवल कमाने में। बच्चों को दुनियावी हुनर के साथ-साथ दीनी तालीम देना भी ज़रूरी है।

✅ [19] अनाथ का माल वापस करने की शर्त

इस आयत के आधार पर दो रायें हैं:

  • साहेबैन (इमाम मुहम्मद और इमाम यूसुफ़ – رحمہما اللہ) के अनुसार, अगर बच्चा बालिग़ तो हो जाए, लेकिन समझदार न हो, तो उसका माल उसे नहीं लौटाया जाएगा।
  • इमाम अबू हनीफ़ा (رضي الله عنه) के अनुसार, अगर 25 वर्ष की उम्र हो जाए, तो चाहे समझदारी न भी हो, माल लौटा देना चाहिए।
    इससे माल की हिफ़ाज़त और उसके सही इस्तेमाल की अहमियत साबित होती है।

✅ [20] अनाथों के माल के ग़ैर-ज़रूरी इस्तेमाल की ममनूअत

कुछ संरक्षक अनाथों का माल शादी-विवाह में फ़ुज़ूल खर्च करके बर्बाद कर देते हैं, और उनकी भलाई की परवाह नहीं करते। कुछ लोग बुनियादी ज़रूरतों पर भी ज़्यादा वसूल करते हैं। ये सब काम इस आयत के तहत सख़्त मना हैं।

✅ [21] ग़रीब संरक्षक का जायज़ इस्तेमाल

अगर संरक्षक ग़रीब हो, तो वह उचित और ज़रूरी हद तक अनाथ के माल से फ़ायदा उठा सकता है। क्योंकि अनाथ की देखभाल एक दीनी ज़िम्मेदारी है। इसी तरह, इमामत, मदरसे में तालीम देने जैसी खिदमात के बदले में उज्र लेना जायज़ है, जैसे कि खुलफ़ा-ए-राशिदीन में से कुछ ने लिया।

✅ [22] माल सौंपते वक़्त गवाह बनाने की हिदायत

"गवाह बनाओ" का हुक्म ज़रूरी नहीं, बल्कि मुस्तहब (प्रेरणादायक) है। जहां माली झगड़े का डर हो, वहां गवाह बनाना बहतर और ऐहतियात है। इससे ये भी सीख मिलती है कि हर हुक्म फ़र्ज़ नहीं होता, कुछ हुक्म इंसाफ़ और दिल की तसल्ली के लिए होते हैं।

Sign up for Newsletter

×

📱 Download Our Quran App

For a faster and smoother experience,
install our mobile app now.

Download Now