और उनके इस कहने पर कि हमने मसीह ईसा इब्ने मरयम, अल्लाह के रसूल को क़त्ल कर डाला [452], हालाँकि न तो उन्होंने उन्हें क़त्ल किया और न ही सूली पर चढ़ाया, बल्कि कोई और उनके जैसा बना दिया गया [453] उनके लिए। और निःसंदेह जो लोग इसके बारे में विवाद करते हैं, वे संदेह में पड़े हुए हैं। उन्हें इसका हरगिज़ कोई ज्ञान नहीं [454], वे केवल अनुमान के पीछे चल रहे हैं, और निःसंदेह उन्होंने उन्हें क़त्ल नहीं किया।
यहूदियों ने घमंड से कहा कि हमने मसीह ईसा इब्ने मरयम को क़त्ल किया, जबकि यह सरासर झूठ था। ईसाइयों ने इस झूठे दावे को शहादत मान लिया, जो कि उनकी ग़लती है। दोनों के दावे ग़लत हैं और अल्लाह ने कुरआन में इन्हें साफ़ तौर पर झुटला दिया है। यहूदियों ने झूठ बोला और ईसाई अपने विश्वास में गुमराह हो गए।
अल्लाह ने ईसा (अलैहिस्सलाम) को सूली पर चढ़ा हुआ दिखा दिया, जबकि हक़ीक़त में वह एक मुनाफ़िक़ था जो ईसा (अलैहिस्सलाम) को पकड़वाने गया था, और उसे ही ईसा के रूप जैसा बना दिया गया। शरीर और अंग तो उस मुखबिर के थे, लेकिन चेहरा ईसा जैसा बना दिया गया। यहूदियों ने उसे ही ईसा समझकर सूली पर चढ़ा दिया, जबकि अल्लाह ने ईसा (अलैहिस्सलाम) को जीवित आसमानों की ओर उठा लिया। उनका भ्रम और आपसी विरोधाभास इस ग़लती की पुष्टि करता है।
यह आयत बताती है कि जो लोग ईसा (अलैहिस्सलाम) के अंजाम के बारे में भिन्न मत रखते हैं, वे संदेह में पड़े हुए हैं और उन्हें कोई निश्चित ज्ञान नहीं है। वे केवल अनुमानों और अटकलों के पीछे चलते हैं। इसमें आज के समय के गुमराह फिरक़े जैसे लाहौरी, क़ादियानी और मिर्जाई भी शामिल हैं, जो दावा करते हैं कि ईसा (अलैहिस्सलाम) की प्राकृतिक मृत्यु हुई, जबकि यह दावा कुरआन के स्पष्ट विरोध में है।
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सूरह अन-निसा आयत 157 तफ़सीर