(ऐ प्यारे नबी मुहम्मद ﷺ) अहले किताब आपसे आसमान से कोई किताब उतारने की माँग करते हैं [439]। हालाँकि इससे भी बड़ी बात उन्होंने मूसा से माँगी थी—उन्होंने कहा था: हमें अल्लाह को खुल्लम खुल्ला दिखाओ। फिर उनके ज़ुल्म की वजह से बिजली ने उन्हें आ दबोचा [440]। फिर उन्होंने उस बछड़े की पूजा शुरू कर दी, जबकि उनके पास खुली निशानियाँ आ चुकी थीं [441]। लेकिन हमने फिर भी उन्हें माफ़ कर दिया [442] और मूसा को स्पष्ट ग़लबा अता किया [443].
यह आयत यहूदी नेता काब बिन अशरफ़ के सवाल के जवाब में नाज़िल हुई,
जिसने रसूलुल्लाह ﷺ से कहा:
"अगर आप वाक़ई अल्लाह के रसूल हैं, तो हमारे लिए आसमान से तौरात जैसी एक किताब उतारिए।"
यह माँग हक़ की तलाश में नहीं थी,
बल्कि तकब्बुर और मज़ाक़ के अंदाज़ में की गई थी।
क़ुरआन बताता है कि इससे पहले भी इसी तरह की या इससे बड़ी माँगें बनी इसराईल ने मूसा से की थीं —
ये रवैया हमेशा से अहले किताब में इंकार और सरकशी का रहा है।
बनी इसराईल ने अल्लाह को सीधे देखने की माँग की,
मगर यह मुहब्बत या शौक़ से नहीं,
बल्कि मूसा अलैहिस्सलाम पर यक़ीन की कमी की वजह से थी।
इस बेहूदगी और तकब्बुर की सज़ा में बिजली ने उन्हें आ दबोचा।
इसका मुक़ाबला मूसा अलैहिस्सलाम की उस दुआ से है,
जिसमें उन्होंने अल्लाह को देखने की तमन्ना मुहब्बत से की थी, शक से नहीं।
इससे हमें यह सबक़ मिलता है कि:
नियत ही अमल की असलियत तय करती है —
क़ाबील, औरत की चाहत में कुफ़्र तक पहुँच गया,
जबकि हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम के भाइयों ने,
भले ही गुनाह किया, लेकिन उनका मक़सद अपने बाप की मोहब्बत हासिल करना था —
इसलिए वो ईमान वाले ही रहे।
तौरात पाने और मूसा अलैहिस्सलाम के मोज़िज़ात देखने के बाद भी,
बनी इसराईल ने बछड़े की पूजा की —
यह उनकी शिद्दत से नाफ़रमानी और बग़ावत का खुला सबूत था।
सच्चाई और खुली निशानियाँ मिलने के बावजूद ऐसा करना,
उनके अख़लाक़ी पतन और ईमान की कमजोरी को दिखाता है।
इतने बड़े गुनाह के बावजूद,
जब उन्होंने सच्चे दिल से तौबा की,
तो अल्लाह ने उन्हें माफ़ कर दिया।
यह आज के यहूदियों के लिए भी एक पैग़ाम है:
अगर तुम भी ईमान लाओ और इस्लाम क़बूल करो,
तो अल्लाह की रहमत इतनी वसीअ है कि वह तुम्हारे तमाम पिछले गुनाह माफ़ कर सकता है।
अल्लाह ने मूसा अलैहिस्सलाम को ज़ाहिरा ग़लबा अता किया —
फ़िरऔन और उसकी फ़ौज को डुबो दिया गया।
इससे बनी इसराईल के दिलों में इतना ख़ौफ़ और एहतराम पैदा हुआ,
कि वो कठोर से कठोर हुक्म को भी मानने को तैयार हो गए।
बछड़े की पूजा करने वालों ने खुद को सज़ा के लिए पेश कर दिया,
क्योंकि अल्लाह ने मूसा को वह दबदबा अता किया था
जो उन्हें रूहानी और दीनवी सच्चाई पर अमल के लिए मजबूर करता था।
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सूरह अन-निसा आयत 153 तफ़सीर