कुरान - 4:42 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

يَوۡمَئِذٖ يَوَدُّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ وَعَصَوُاْ ٱلرَّسُولَ لَوۡ تُسَوَّىٰ بِهِمُ ٱلۡأَرۡضُ وَلَا يَكۡتُمُونَ ٱللَّهَ حَدِيثٗا

अनुवाद -

उस दिन जो लोग काफ़िर हुए और रसूल की नाफ़रमानी की [155], वे चाहेंगे कि काश ज़मीन उनके ऊपर बराबर कर दी जाती [156], और वे अल्लाह से एक भी बात छिपा न सकेंगे।

सूरह अन-निसा आयत 42 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 42 की तफ़्सीर

 

✅ [155] ईमान और अमल दोनों का हिसाब होगा

इस आयत में काफ़िरों की दोहरी नाकामी का ज़िक्र है: "काफ़िर हुए" मतलब अक़ीदे की ख़राबी — अल्लाह, तौहीद या रसूलुल्लाह ﷺ का इंकार। और "रसूल की नाफ़रमानी की" मतलब अमल की ख़राबी — रसूल ﷺ के हुक्मों का इंकार या उलंघन। इससे सीख मिलती है: हर मोमिन को ज़िंदगी भर अपने ईमान और अमल दोनों को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि इनमें से किसी में भी कमी आख़िरत में हसरत और तबाही का सबब बन सकती है।

✅ [156] ग़ायब हो जाने की मायूस आरज़ू

इस आयत में काफ़िरों की शदीद मायूसी का बयान है: क़ियामत के दिन वे चाहेंगे कि ज़मीन उनके ऊपर बराबर कर दी जाए, ताकि वे अज़ाब से बच सकें। यह उनकी नाकामी, शर्मिंदगी और बेबसी को दर्शाता है। वे अल्लाह से एक लफ़्ज़ भी नहीं छिपा सकेंगे। जैसा कि सूरा नबअ (78:40) में अल्लाह फ़रमाता है: "काफ़िर कहेगा, काश मैं मिट्टी होता!" — यानी जानवरों की तरह मिट्टी में मिल जाना चाहता है, ताकि हिसाब और सज़ा से बच सके

Sign up for Newsletter

×

📱 Download Our Quran App

For a faster and smoother experience,
install our mobile app now.

Download Now