निःसंदेह, हमने आपको (ऐ हबीब) वही वह़ी भेजी है [466] जो हमने नूह और उनके बाद आने वाले नबियों को भेजी थी [467]। और हमने इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, याक़ूब और उनके बच्चों [468], और ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलेमान को भी वह़ी भेजी। और हमने दावूद को ज़बूर अता की।
इस आयत में यह बात स्पष्ट की गई है कि नबूवत एक निरंतर और अल्लाही सिलसिला है, जिसकी शुरुआत हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) से हुई और आख़िरी कड़ी हुज़ूर मुहम्मद ﷺ हैं।
यहाँ तुलना केवल वह़ी मिलने के अमल की है, विषयवस्तु की नहीं।
📌 नोट: कुछ गुमराह गुट हज़रत सुलेमान (अलैहिस्सलाम) की नबूवत का इनकार करते हैं, जो कुरआन के ख़िलाफ़ है।
किसी भी नबी का इनकार करना कुफ्र है।
हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) पहले ऐसे नबी थे जिन्होंने अल्लाह का पैग़ाम अपने परिवार से बाहर जाकर खुल्लमखुल्ला लोगों तक पहुँचाया।
इससे दावत व तौहीद का सार्वजनिक सिलसिला शुरू हुआ, जो आगे आने वाले सभी नबियों का मिशन रहा।
"और उनके बच्चे" (وَٱلْأَسْبَاطِ) के दो प्रसिद्ध अर्थ बताए गए हैं:
📚 यह मत उस अक़ीदे को मज़बूत करता है कि
नबियों की मासूमियत (अस्मा) नबूवत से पहले और बाद — दोनों हालात में रहती है, जैसा कि जمهूर उलमा का मत है।
मदीने के कुछ यहूदी इस आधार पर कुरआन का इंकार करते थे कि यह एक ही बार में नाज़िल क्यों नहीं हुआ, जबकि उनकी अपनी किताबें भी टुकड़ों में आई थीं।
यह आयत इस आपत्ति का जवाब देती है, कि:
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सूरह अन-निसा आयत 163 तफ़सीर