कुरान - 4:163 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

۞إِنَّآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَيۡكَ كَمَآ أَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰ نُوحٖ وَٱلنَّبِيِّـۧنَ مِنۢ بَعۡدِهِۦۚ وَأَوۡحَيۡنَآ إِلَىٰٓ إِبۡرَٰهِيمَ وَإِسۡمَٰعِيلَ وَإِسۡحَٰقَ وَيَعۡقُوبَ وَٱلۡأَسۡبَاطِ وَعِيسَىٰ وَأَيُّوبَ وَيُونُسَ وَهَٰرُونَ وَسُلَيۡمَٰنَۚ وَءَاتَيۡنَا دَاوُۥدَ زَبُورٗا

अनुवाद -

निःसंदेह, हमने आपको (ऐ हबीब) वही वह़ी भेजी है [466] जो हमने नूह और उनके बाद आने वाले नबियों को भेजी थी [467]। और हमने इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, याक़ूब और उनके बच्चों [468], और ईसा, अय्यूब, यूनुस, हारून और सुलेमान को भी वह़ी भेजी। और हमने दावूद को ज़बूर अता की।

सूरह अन-निसा आयत 163 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 163 की तफ़्सीर

 

✅ [466] वह़ी की वास्तविकता और उसका सिलसिला

इस आयत में यह बात स्पष्ट की गई है कि नबूवत एक निरंतर और अल्लाही सिलसिला है, जिसकी शुरुआत हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) से हुई और आख़िरी कड़ी हुज़ूर मुहम्मद ﷺ हैं।

  • हर नबी को अल्लाह की तरफ़ से वह़ी मिली, लेकिन हर नबी को मिली वह़ी की विषयवस्तु और हुक्म अलग हो सकते हैं
  • उदाहरण के तौर पर, हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) को जिहाद से संबंधित वह़ी नहीं मिली थी।

यहाँ तुलना केवल वह़ी मिलने के अमल की है, विषयवस्तु की नहीं

📌 नोट: कुछ गुमराह गुट हज़रत सुलेमान (अलैहिस्सलाम) की नबूवत का इनकार करते हैं, जो कुरआन के ख़िलाफ़ है
किसी भी नबी का इनकार करना कुफ्र है

✅ [467] हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) — पहले सार्वजनिक प्रचारक

हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) पहले ऐसे नबी थे जिन्होंने अल्लाह का पैग़ाम अपने परिवार से बाहर जाकर खुल्लमखुल्ला लोगों तक पहुँचाया
इससे दावत व तौहीद का सार्वजनिक सिलसिला शुरू हुआ, जो आगे आने वाले सभी नबियों का मिशन रहा।

✅ [468] हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) के बच्चे — क्या सभी नबी थे?

"और उनके बच्चे" (وَٱلْأَسْبَاطِ) के दो प्रसिद्ध अर्थ बताए गए हैं:

  • पहला मत: हज़रत याक़ूब (अलैहिस्सलाम) के सारे बेटे नबी थे
    हज़रत यूसुफ़ (अलैहिस्सलाम) की क़िस्से में उनके भाइयों की जो कमियाँ आई हैं, वो नबूवत से पहले की थीं, और नबी बनने के बाद अल्लाह उन्हें मासूम बना देता है
  • दूसरा मत: सारे बेटे नबी नहीं थे, बल्कि यहाँ "बच्चों" से मुराद उनके वंश में आने वाले बानी इसराईल के नबी हैं
    यह मत आयत के क्रम से भी मेल खाता है, क्योंकि इसके बाद जिन नबियों का ज़िक्र आता है, वे सभी हज़रत याक़ूब के वंशज ही हैं

📚 यह मत उस अक़ीदे को मज़बूत करता है कि
नबियों की मासूमियत (अस्मा) नबूवत से पहले और बाद — दोनों हालात में रहती है, जैसा कि जمهूर उलमा का मत है

💡 यहूदियों की आपत्ति का उत्तर

मदीने के कुछ यहूदी इस आधार पर कुरआन का इंकार करते थे कि यह एक ही बार में नाज़िल क्यों नहीं हुआ, जबकि उनकी अपनी किताबें भी टुकड़ों में आई थीं

यह आयत इस आपत्ति का जवाब देती है, कि:

  • पहले नबियों पर भी वह़ी क्रमशः ही आई थी, जैसे हज़रत नूह (अलैहिस्सलाम) की वह़ी।
  • फिर भी यहूदी उन नबियों को मानते हैं, तो हुज़ूर ﷺ की वह़ी को एक बार में न आने के आधार पर इंकार करना खुद उनके अपने मानकों के ख़िलाफ़ है

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