कुरान - 4:55 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

فَمِنۡهُم مَّنۡ ءَامَنَ بِهِۦ وَمِنۡهُم مَّن صَدَّ عَنۡهُۚ وَكَفَىٰ بِجَهَنَّمَ سَعِيرًا

अनुवाद -

कुछ उनमें से उस पर ईमान लाए [193] और कुछ उससे मुंह मोड़ गए। और जहन्नम ही काफ़ी है, जो भड़कती हुई आग है।

सूरह अन-निसा आयत 55 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 55 की तफ़्सीर

 

✅ [193] किताब वालों में से कुछ का ईमान लाना और कुछ का इन्कार करना

यहाँ "उस पर ईमान लाने" से मुराद हज़रत मुहम्मद ﷺ पर ईमान लाना है, जैसा कि हज़रत अब्दुल्लाह बिन सलाम और काअ़ब अल-अहबार (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने किया। इसके बरअक्स "मुंह मोड़ने वालों" से मुराद वो लोग हैं जो ईमान से महरूम रह गए, जैसे कि काअ़ब बिन अशरफ़। इससे यह बात साबित होती है कि इल्म तभी फ़ायदा देता है जब अल्लाह का फ़ज़ल और हिदायत शामिल हो। अब्दुल्लाह बिन सलाम और काअ़ब बिन अशरफ़ दोनों को तौरेत का इल्म था, मगर अब्दुल्लाह (रज़ियल्लाहु अन्हु) ने ईमान के सबब उससे फ़ायदा उठाया, जबकि काअ़ब बिन अशरफ़ ने कुफ़्र के चलते अपने इल्म से कोई नफ़ा न उठाया।

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