कुरान - 4:15 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

وَٱلَّـٰتِي يَأۡتِينَ ٱلۡفَٰحِشَةَ مِن نِّسَآئِكُمۡ فَٱسۡتَشۡهِدُواْ عَلَيۡهِنَّ أَرۡبَعَةٗ مِّنكُمۡۖ فَإِن شَهِدُواْ فَأَمۡسِكُوهُنَّ فِي ٱلۡبُيُوتِ حَتَّىٰ يَتَوَفَّىٰهُنَّ ٱلۡمَوۡتُ أَوۡ يَجۡعَلَ ٱللَّهُ لَهُنَّ سَبِيلٗا

अनुवाद -

वे औरतें जो तुम में से बेहयाई (ज़िना) करें [59], तो उनके ख़िलाफ़ चार गवाह [60] अपने ही लोगों में से पेश करो। फिर अगर वे गवाही दे दें, तो उन औरतों को घरों में क़ैद [61] रखो, यहाँ तक कि मौत उन्हें ले जाए [62], या अल्लाह उनके लिए कोई रास्ता बना दे [63]।

सूरह अन-निसा आयत 15 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 15 की तफ़्सीर

 

✅ [59] इस आयत में "बेहयाई" का अर्थ

यहाँ "बेहयाई" से मुराद ज़िना (व्यभिचार) है, क्योंकि यह लफ़्ज़ खास माने में इस्तेमाल हुआ है। अगर इसे आम माना जाए, तो हर तरह की अश्लीलता मुराद हो सकती है, लेकिन यहाँ इसका मतलब साफ़ तौर पर ज़िना, यानी शरीअत के मुताबिक सज़ा का मुस्तहिक़ गुनाह है।

✅ [60] चार मर्द गवाहों की शर्त

इस आयत में ज़िना साबित करने के लिए चार गवाहों की शर्त रखी गई है। ये गवाह:

  • मर्द हों,
  • नेक और पक्के ईमान वाले हों,
  • आज़ाद (ग़ैर-ग़ुलाम) हों,
  • और मुसलमानों में से हों।

यह हुक्म आम तौर पर मुसलमानों से मुख़ातिब है, या अदालत से। यहाँ "तुम्हारी औरतों" से मुराद बीवियाँ हैं, ना कि लौंडियाँ। अगर शौहर गवाह पेश करे और ज़िना साबित हो जाए, तो पत्थर से मारने की सज़ा (रज्म) दी जाएगी। और अगर शौहर गवाह ना ला सके, तो शरीअत का लिआन (परस्पर लानत भेजना) लागू होगा।

ऐसी औरत को तलाक़ देना ज़रूरी नहीं, लेकिन उसे गुनाह से रोकना फ़र्ज़ है, जैसा कि "उन्हें क़ैद करो" से समझ आता है।

✅ [61] क़ैद का तरीक़ा

ऐसी औरत को घर में इस तरह महदूद किया जाएगा कि:

  • वह बाहर ना जा सके,
  • जब तक कि या तो उसकी मौत हो जाए,
  • या अदालत में उस पर हद लागू की जाए।

✅ [62] क़ैद की मुद्दत

यह एक उम्र भर की सख़्त क़ैद थी, जब तक कि:

  • औरत मर न जाए,
  • या अल्लाह की तरफ़ से कोई नया हुक्म ना आ जाए।

✅ [63] नासख़ (रद्द करने वाला हुक्म) की तरफ़ इशारा

यह आयत बाद में रज्म या कोड़े मारने वाले हुक्म से मंसूख़ (नासख़) हो गई। "यहाँ तक कि अल्लाह उनके लिए कोई राह बना दे" — से यही इशारा है।

इससे यह भी साबित होता है कि:

  • नासख़ (हुक्म का रद्द होना) क़ुरआन का हिस्सा है,
  • और यह एक हुक्म को दूसरे हुक्म से बदलने का शरीअत में मौजूद तरीका है।

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