कुरान - 4:48 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

إِنَّ ٱللَّهَ لَا يَغۡفِرُ أَن يُشۡرَكَ بِهِۦ وَيَغۡفِرُ مَا دُونَ ذَٰلِكَ لِمَن يَشَآءُۚ وَمَن يُشۡرِكۡ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱفۡتَرَىٰٓ إِثۡمًا عَظِيمًا

अनुवाद -

निश्चय ही अल्लाह उसके साथ साझी ठहराना माफ़ नहीं करता [179], और इससे नीचे जो कुछ हो वह जिसे चाहे माफ़ कर देता है [180], और जो कोई अल्लाह के साथ साझी ठहराए, उसने बहुत बड़ा गुनाह गढ़ लिया [181]।

सूरह अन-निसा आयत 48 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 48 की तफ़्सीर

 

✅ [179] शिर्क यानी ईमान का इनकार

इस आयत में मुषरिक (अनेकेश्वरवादी) का तात्पर्य केवल मूर्ति-पूजक नहीं, बल्कि हर वह व्यक्ति है जो हज़रत मुहम्मद ﷺ की नबूवत का इंकार करता है — भले ही वह अल्लाह की एकता का दावा करे। जैसा कि सूरा अल-बक़रा (2:221) में कहा गया: "और अपनी औरतों का निकाह मुषरिकों से न करो जब तक कि वे ईमान न ले आएं।"
इससे यह शिक्षा मिलती है कि जो व्यक्ति कुफ़्र (अविश्वास) की हालत में मरे, उसे कभी माफ़ नहीं किया जाएगा, और किसी मरे हुए काफ़िर के लिए 'अल्लाह उस पर रहमत करे' कहना मना है
कुरआन में अक्सर "शिर्क" को अविश्वास के लिए एक आम शब्द के रूप में इस्तेमाल किया गया है।

✅ [180] शिर्क के सिवा हर गुनाह माफ़ हो सकता है

यह हिस्सा यह बताता है कि हर गुनाह — बड़ा हो या छोटा — अल्लाह की मर्ज़ी से माफ़ हो सकता है, सिवाय शिर्क के, अगर कोई व्यक्ति उसी हालत में मरे।
माफ़ी की दो श्रेणियाँ हैं:

  • अल्लाह के हुकूक (अधिकार): इन्हें अल्लाह सीधे माफ़ कर सकता है।
  • बंदों के हुकूक: इन्हें वही व्यक्ति माफ़ कर सकता है जिसका हक़ मारा गया हो।
    कुछ गुनाह शफ़ाअत (सिफ़ारिश) से माफ़ हो सकते हैं, कुछ को जहन्नम की अस्थायी सज़ा के बाद माफ़ किया जा सकता है — यह सब अल्लाह की मर्ज़ी और इंसाफ़ पर निर्भर करता है।

✅ [181] शिर्क सबसे बड़ा गुनाह है

यहां फिर से शिर्क का अर्थ अविश्वास ही है — चाहे वह मूर्ति-पूजा के रूप में हो या रसूल ﷺ का इनकार करने के रूप में
इस लिहाज़ से हर काफ़िर बहुत बड़ा गुनाहगार है, जिसने सबसे बड़ा अपराध किया है।

ऐतिहासिक प्रसंग:
तफ़्सीर रूहुल बयान के अनुसार यह आयत और इससे संबंधित आयतें हज़रत वह्शी (रज़ि.) के संदर्भ में उतरीं — जिन्होंने हज़रत हमज़ा (रज़ि.) को शहीद किया था और इस गुनाह व शिर्क के कारण इस्लाम कबूल करने में हिचकिचा रहे थे। उन्होंने रसूल ﷺ को खत लिखा: "मैंने शिर्क किया और एक मोमिन का क़त्ल किया।"
इसके जवाब में अल्लाह ने यह आयत उतारी ताकि यह स्पष्ट हो जाए कि अगर कोई मौत से पहले इस्लाम अपना ले, तो शिर्क और क़त्ल जैसे गुनाह भी माफ़ हो सकते हैं

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