निःसंदेह अल्लाह तुम्हें हुक्म देता है कि अमानतें उनके हक़दारों को लौटा दिया करो [201], और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो तो इंसाफ़ के साथ फ़ैसला किया करो [202]। निःसंदेह अल्लाह तुम्हें बहुत अच्छी सीख देता है। बेशक, अल्लाह हर बात को सुनने वाला, देखने वाला है [203]।
अमानत किसी भी ऐसी चीज़ को कहते हैं जिसे किसी पर भरोसे के साथ सौंपा गया हो —
चाहे वह माल, जिम्मेदारी, इल्म, या रूहानी राज़ क्यों न हो।
हर इंसान पर यह फ़र्ज़ है कि जो अमानत उसके पास है, ईमानदारी और सच्चाई से अदा करे।
कुछ उलमा के मुताबिक, यह आयत उस समय नाज़िल हुई जब फ़तेह मक्का के समय
हुज़ूर ﷺ ने हज़रत उस्मान बिन तल्हा (रज़ि.) को काबा की चाबी वापस लौटाने का हुक्म दिया।
हालाँकि कुछ सहाबा इस जिम्मेदारी को लेना चाहते थे, लेकिन अमानत की हक़दारी के उसूल पर चलते हुए
चाबी उन्हीं को लौटाई गई।
हज़रत उस्मान बाद में इस हुस्ने-अख़लाक़ से मुतास्सिर होकर मुसलमान हो गए।
आज भी उनके वंशज काबा की चाबियों के संरक्षक हैं।
हालाँकि यह आयत एक ख़ास मौक़े पर उतरी, लेकिन इसका हुक्म हर किस्म की अमानत पर लागू होता है।
इस्लामी क़ानून के अनुसार, हाकिम या ज़िम्मेदार अफसर को फ़ैसला करते समय
दोनों पक्षों के साथ बराबरी का सलूक करना ज़रूरी है, इन पाँच बातों में:
ऐ हाकिमों और ज़िम्मेदारों! याद रखो:
तुमसे ऊपर भी एक सर्वोच्च सत्ता है — अल्लाह, जो:
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सूरह अन-निसा आयत 58 तफ़सीर