(ऐ प्यारे नबी ﷺ!) लोग आपसे फ़ैसले के बारे में सवाल करते हैं [496]। कह दीजिए: अल्लाह तुम्हें उस व्यक्ति के बारे में फ़ैसला बताता है [497] जो न बाप छोड़े और न औलाद। अगर कोई मर्द मरे और उसकी कोई औलाद न हो, मगर एक बहन हो, तो उसे उसके छोड़े हुए माल का आधा हिस्सा मिलेगा। और अगर वह औरत मरे और उसकी कोई औलाद न हो, तो उसका भाई उसके पूरे माल का वारिस होगा [498]। लेकिन अगर दो बहनें हों, तो उन्हें छोड़े हुए माल का दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा [499]। और अगर भाई-बहन दोनों हों, तो मर्द को दो औरतों के बराबर हिस्सा मिलेगा [500]। अल्लाह तुम्हें साफ़-साफ़ बयान कर रहा है ताकि तुम गुमराही में न पड़ो [502]। और अल्लाह हर चीज़ का इल्म रखता है।
कलालाह उस व्यक्ति को कहते हैं जो न बाप छोड़े और न औलाद।
यह आयत हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि०) के सवाल के जवाब में नाज़िल हुई।
जब वे बीमार हुए तो उन्होंने नबी ﷺ से पूछा: "मेरी कोई औलाद नहीं, मेरे माल का क्या होगा?"
नबी ﷺ ने वुज़ू किया और बचा हुआ पानी उन पर छिड़का — जिससे उन्हें होश आया और शिफ़ा मिली।
फिर यह आयत नाज़िल हुई और नबी ﷺ ने फ़रमाया कि "तुम इस बीमारी से नहीं मरोगे" — जो नबी की इल्म-ए-ग़ैब और मुजज़ा होने की दलील है।
कलालाह वह है जो मरते वक़्त न तो औलाद छोड़े और न बाप।
अगर उसके पीछे सिर्फ़ एक बहन हो, तो उसे आधा हिस्सा मिलेगा।
अगर मरने वाले की औलाद मौजूद हो, तो भाई-बहनों को हिस्सा नहीं मिलेगा — क्योंकि औलाद को तरजीह है।
अगर किसी औरत की मौत हो और उसकी कोई औलाद न हो, तो उसका भाई उसके पूरे माल का वारिस होगा।
लेकिन अगर उसकी औलाद हो, तो भाई को हिस्सा नहीं मिलेगा।
इसी तरह अगर बाप या दादा ज़िंदा हों, तो भी भाई-बहनों को हिस्सा नहीं मिलेगा।
अगर किसी मरे हुए के पीछे दो या ज़्यादा बहनें हों और कोई औलाद न हो,
तो उन्हें मिलकर माल का दो-तिहाई (2/3) हिस्सा मिलेगा।
यह नियम सिर्फ़ दो बहनों तक सीमित नहीं, बल्कि दो या अधिक सभी बहनों के लिए है।
अगर भाई और बहनें दोनों हों, तो हर मर्द को दो औरतों के बराबर हिस्सा मिलेगा —
यानि हिस्सा 2:1 के अनुपात में होगा।
इसका आधार मर्दों पर रखी गई आर्थिक ज़िम्मेदारियाँ हैं।
ये अहकाम सगे भाई-बहन (एक ही मां-बाप) और अय्यानी भाई-बहन (सिर्फ़ बाप साझे) पर लागू होते हैं।
जबकि खालिस मां से भाई-बहन (उख्ती) के लिए अलग नियम हैं — जिनका ज़िक्र पहले (आयत 12) में किया जा चुका है।
इसमें कोई टकराव नहीं, क्योंकि हर श्रेणी का हुक्म अलग संदर्भ में बताया गया है।
विरासत के मसले को शरीअत के सबसे तफ़्सील वाले मसलों में रखा गया है।
हदीस में है:
"इल्मुल फ़राइज़ (विरासत का ज्ञान) आधा दीन है।"
यह दिखाता है कि माल की तक़सीम में इंसाफ़ और हिदायत के लिए अल्लाह ने बेहद सटीक और ज़ाहिर क़ानून नाज़िल फ़रमाए हैं — ताकि कोई ज़ुल्म न हो और कोई गुमराही में न पड़े।
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सूरह अन-निसा आयत 176 तफ़सीर