और (ऐ हुज़ूर) अगर आप पर अल्लाह का फ़ज़्ल और रहमत न होती [347], तो उनमें से एक गिरोह ज़रूर आपको बहकाने की कोशिश करता। लेकिन वे ख़ुद को ही गुमराह कर रहे हैं [348], और आपको कोई नुक़सान नहीं पहुँचा सकते। और अल्लाह ने आप पर किताब और हिकमत नाज़िल की [349], और आपको वो सिखाया जो आप नहीं जानते थे [350]। और अल्लाह का फ़ज़्ल आप पर बहुत बड़ा है [351]।
यहां यह बताया गया है कि अगर अल्लाह तआला ने रसूल ﷺ की बेगुनाही का ऐलान न किया होता और उन्हें इल्म की दौलत से न नवाज़ा होता, तो वो लोग जो दूसरों को गुमराह कर रहे थे, आपको भी बहकाने की कोशिश करते और हो सकता था कि उनके झूठे गवाहियों पर कोई फ़ैसला हो जाता।
इससे यह हक़ीक़त वाज़ेह होती है कि अल्लाह रसूल ﷺ को गुमराही से महफूज़ रखता है, इसलिए कोई भी उन्हें बहका नहीं सकता। जैसे कि क़ुरआन कहता है: “वे तो खुद को ही गुमराह करते हैं और समझते नहीं।” सहाबा की ज़िंदगी रसूल ﷺ की रहनुमाई से नूरानी हुई और उनका ईमान अटल रहा। रसूल ﷺ को अल्लाह ने हर नुक़सान से महफूज़ रखा।
इससे मालूम होता है कि क़ुरआन और हदीस दोनों अल्लाह की तरफ़ से हैं। क़ुरआन के लफ़्ज़ और मअनी दोनों अल्लाह की तरफ़ से हैं, जबकि हदीस में मअनी अल्लाह की तरफ़ से होता है और लफ़्ज़ रसूल ﷺ के होते हैं।
“और आपको वह सिखाया जो आप नहीं जानते थे” से यह साबित होता है कि रसूल ﷺ को हर तरह का इल्म दिया गया, और आप कभी गुमराही का शिकार नहीं हो सकते। अलबत्ता, ज़ाहिरी गवाही के बुनियाद पर फ़ैसला किया जाता है—अगर गवाही झूठी हो लेकिन उसका कोई इंकार मौजूद न हो, तो फ़ैसला हक़ीक़त के ख़िलाफ़ भी हो सकता है।
अल्लाह ने दुनिया की सारी नेमतों को “थोड़ी” कहा है (सूरा अन-निसा, 4:77), लेकिन यहां फ़रमाया: “अल्लाह का फ़ज़्ल आप पर बहुत बड़ा है।” इसका मतलब यह है कि दुनिया की सारी दौलतें भी रसूल ﷺ को मिले फ़ज़्ल के मुक़ाबले में कुछ नहीं।
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सूरह अन-निसा आयत 113 तफ़सीर