कुरान - 4:44 सूरह अन-निसा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

أَلَمۡ تَرَ إِلَى ٱلَّذِينَ أُوتُواْ نَصِيبٗا مِّنَ ٱلۡكِتَٰبِ يَشۡتَرُونَ ٱلضَّلَٰلَةَ وَيُرِيدُونَ أَن تَضِلُّواْ ٱلسَّبِيلَ

अनुवाद -

क्या तुमने उन्हें नहीं देखा जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिया गया था? [165] वे तुम्हें भी गुमराह करने की कोशिश करते हैं, और चाहते हैं कि तुम भी राह से भटक जाओ [166]।

सूरह अन-निसा आयत 44 तफ़सीर


📖 सूरा अन-निसा – आयत 44 की तफ़्सीर

 

✅ [165] आंशिक ईमान और चयनात्मक इंकार

"किताब का एक हिस्सा दिया गया" — इससे मुराद है: यहूदियों में से वे लोग जो तौरात के कुछ हिस्सों पर तो ईमान लाते थे, लेकिन बाक़ी हिस्सों, ख़ासकर हज़रत मुहम्मद ﷺ की नबूवत, को झुठलाते थे। वे हज़रत मूसा (अलैहि सलाम) को मानते थे, मगर अंतिम रसूल ﷺ का इंकार करते थे, जबकि उनकी किताबों में उनका ज़िक्र साफ़ मौजूद था। इस तरह का चयनात्मक ईमान, रूहानी बेईमानी की मिसाल है।

✅ [166] गुमराही की जड़: हसद और बग़ावत

"रास्ता भटकाना" यानी: वे जानबूझकर मुसलमानों को गुमराह करने की कोशिश करते हैं, क्योंकि वे खुद ईमान से इंकार कर चुके हैं, और चाहते हैं कि दूसरे भी उसी गुमराही में फँस जाएँ। इससे हमें सबक मिलता है: गुमराह इंसान, कभी-कभी शैतान से भी ज़्यादा ख़तरनाक होता है, क्योंकि शैतान तो सच्चे परहेज़गारों से मायूस हो चुका है, मगर ये लोग हर वक़्त धोखा देने की साज़िश करते रहते हैं। उनका हसद, तकब्बुर और धोखे की आदत उन्हें शैतान से भी ज़्यादा ख़तरनाक बना देती है।

Sign up for Newsletter

×

📱 Download Our Quran App

For a faster and smoother experience,
install our mobile app now.

Download Now