फिर उस समय उनका क्या हाल होता है जब उनके करतूतों के कारण उनपर कोई आपदा आ पड़ती है, फिर वे आपके पास आकर अल्लाह की क़समें खाते हैं कि हमारा इरादा[45] तो केवल भलाई तथा (आपस में) मेल कराना था।
सूरह अन-निसा आयत 62 तफ़सीर
45. आयत का भावार्थ यह है कि मुनाफ़िक़ ईमान का दावा तो करते थे, परंतु अपने विवाद चुकाने के लिए इस्लाम के विरोधियों के पास जाते, फिर जब कभी उन की दो रंगी पकड़ी जाती तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास आ कर मिथ्या शपथ लेते। और यह कहते कि हम केवल विवाद सुलझाने के लिए उनके पास चले गए थे। (इब्ने कसीर)
सूरह अन-निसा आयत 62 तफ़सीर