"और उन्होंने उसके बजाय उस चीज़ की पैरवी की जो शैतानों ने सुलैमान [195] के दौर में पढ़ी थी। सुलैमान ने कुफ़्र नहीं किया था, बल्कि शैतान थे जिन्होंने कुफ़्र किया [196], और लोगों को जादू सिखाते थे और वो (जादू) जो बाबिल में दो फ़रिश्तों — हारूत और मारूत [197] — पर नाज़िल किया गया था। और वो दोनों (फ़रिश्ते) किसी को कुछ नहीं सिखाते थे जब तक ये न कह दें: ‘हम तो सिर्फ़ आज़माइश हैं, इसलिए कुफ़्र न करो’ [198]। और वो उनसे वह चीज़ सीखते थे जिससे आदमी और उसकी बीवी के बीच जुदाई [199] कर दी जाती थी। मगर वो उससे किसी को नुक़सान नहीं पहुँचा सकते थे सिवाए अल्लाह की इजाज़त से। और वो ऐसी चीज़ सीखते थे जो उन्हें नुक़सान देती थी और नफ़ा नहीं देती थी [200]। और बेशक, उन्हें मालूम था कि जो इस (जादू) का सौदा करेगा, उसका आख़िरत में कोई हिस्सा [201] नहीं। और यक़ीनन, कितना बुरा है वो सौदा जो उन्होंने अपने आपको बेच कर किया, काश वो जानते।"
📝 इस्लामी क़ायदा:
कुफ़्र को जानना कुफ़्र नहीं है। मगर उस पर ईमान लाना और अमल करना — कुफ़्र है।
📖 अल्लाह फ़रमाता है:
"हम क़ुरआन में वो चीज़ नाज़िल करते हैं जो शिफ़ा और रहमत है..." (सूरह बनी इस्राईल 17:82)
🕊️ हज़रत ईसा (अ.स) ने कहा:
"मैं अंधे को और कोढ़ी को शिफ़ा देता हूँ, और अल्लाह के हुक्म से मुर्दों को ज़िंदा करता हूँ।" (आल-इमरान 3:49)
इस्लामी अहकाम:
💔 नतीजा:
जो लोग ऐसे जादू के लिए अपनी जानें बेच देते हैं, वो सबसे बुरा सौदा कर रहे हैं —
काश, वो समझते!
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सूरह अल-बक़रा आयत 102 तफ़सीर