कुरान - 2:256 सूरह अल-बक़रा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

لَآ إِكۡرَاهَ فِي ٱلدِّينِۖ قَد تَّبَيَّنَ ٱلرُّشۡدُ مِنَ ٱلۡغَيِّۚ فَمَن يَكۡفُرۡ بِٱلطَّـٰغُوتِ وَيُؤۡمِنۢ بِٱللَّهِ فَقَدِ ٱسۡتَمۡسَكَ بِٱلۡعُرۡوَةِ ٱلۡوُثۡقَىٰ لَا ٱنفِصَامَ لَهَاۗ وَٱللَّهُ سَمِيعٌ عَلِيمٌ

अनुवाद -

256. "धर्म में कोई ज़बरदस्ती नहीं है। निश्चय ही, सही रास्ता ग़लत से अलग हो चुका है। जो कोई झूठे देवता को नकारता है और अल्लाह पर ईमान लाता है, उसने एक मज़बूत सहारा पकड़ लिया है, जो कभी टूटेगा नहीं। और अल्लाह सुनने वाला, जानने वाला है।" [657] [658] [659] [660]

सूरह अल-बक़रा आयत 256 तफ़सीर


[657] धर्म में कोई ज़बरदस्ती नहीं है

  • इस आयत में कहा गया है कि धर्म (इस्लाम) को मानने में किसी पर दबाव नहीं डाला जाता
  • कोई व्यक्ति अगर इस्लाम को स्वीकार नहीं करता तो उसे किसी प्रकार का बलात्कारी दबाव नहीं डाला जाएगा।
  • लेकिन इस्लाम में ईश्वर से मुकरने (अस्तित्व से इनकार) और काफ़िर होने के परिणाम होते हैं, इस आयत का उद्देश्य यह नहीं है कि लोग धर्म बदलने में स्वतंत्र हैं, बल्कि यह कि अल्लाह का रास्ता स्वेच्छा से अपनाया जाना चाहिए।

[658] विश्वास का सही रास्ता गलत से अलग हो चुका है

  • यह आयत बताती है कि सही और ग़लत के बीच का फ़र्क़ साफ़ और स्पष्ट हो चुका है।
  • सही रास्ता वह है जो अल्लाह के अनुसार है, और ग़लत रास्ता वह है जो झूठे देवताओं और शैतान के अनुकरण पर आधारित है।
  • ईमान लाना अल्लाह के रास्ते को अपनाने का नाम है, जबकि काफ़िर और नास्तिक होना झूठे देवताओं को मानने का परिणाम है।

[659] सही विश्वास का मतलब है अल्लाह के दुश्मनों से पूरी तरह से अलग हो जाना

  • "जो कोई झूठे देवता को नकारता है और अल्लाह पर ईमान लाता है" का मतलब है कि ईमान लाने के लिए आपको झूठे और शैतानी देवताओं से अलग होना पड़ेगा।
  • यहाँ क़लिमाह (La ilaha illallah) का संकेत दिया गया है, जिसमें सबसे पहले अल्लाह पर विश्वास करना और फिर हर झूठे देवता का नकारना जरूरी है।
  • सही ईमान तब तक पूरा नहीं होता जब तक अल्लाह के दुश्मनों से पूरी तरह से अलग न हो जाओ।

[660] झूठ से अलग रहकर एक मज़बूत सहारा मिल सकता है

  • "उसने एक मज़बूत सहारा पकड़ लिया है, जो कभी टूटेगा नहीं" से यह समझ आता है कि धर्म और ईमान को सही रूप में पकड़ने के बाद इंसान के पास एक मज़बूत सहारा होता है, जो किसी भी हालात में टूटता नहीं है
  • अल्लाह के रास्ते पर चलने से हमें हर मुश्किल में मज़बूत सहारा मिलता है।
  • जैसे किसी साँप या चोर से बचने के लिए हमें उनसे दूर रहना चाहिए, वैसे ही काफ़िरों और बुरे लोगों से बचना भी हमारे ईमान को मज़बूत बनाता है।
  • अल्लाह ने कहा है: "फिर जब तुम ध्यान से देखो, तो अन्याय करने वालों के साथ न बैठो।" (सूरह अल-अन'आम, 6:68)

निष्कर्ष:

यह आयत इस्लाम में दबाव से धर्म स्वीकार करने की कोई जगह नहीं है।

  • ईमान की सच्चाई झूठ से स्पष्ट रूप से अलग हो चुकी है, और जो व्यक्ति अल्लाह पर विश्वास करता है, वह एक मज़बूत सहारे से जुड़ता है, जो कभी भी टूटने वाला नहीं है।
  • सच्चे ईमान के साथ झूठे देवताओं और शैतानी रास्तों से पूरी तरह से अलग रहना ज़रूरी है, ताकि एक सच्चे विश्वास के साथ इस्लाम में स्थिरता बनी रहे।

Sign up for Newsletter

×

📱 Download Our Quran App

For a faster and smoother experience,
install our mobile app now.

Download Now