कुरान - 2:6 सूरह अल-बक़रा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

إِنَّ ٱلَّذِينَ كَفَرُواْ سَوَآءٌ عَلَيۡهِمۡ ءَأَنذَرۡتَهُمۡ أَمۡ لَمۡ تُنذِرۡهُمۡ لَا يُؤۡمِنُونَ

अनुवाद -

6. यक़ीनन जो लोग काफ़िर हैं [19], उनके लिए बराबर है [20] — चाहे आप उन्हें डराएँ या न डराएँ, वो ईमान नहीं लाएंगे। [21]

सूरह अल-बक़रा आयत 6 तफ़सीर


[19] काफ़िर कौन हैं — और हकीकत क्या है

यहां "काफ़िर" से मुराद वो लोग हैं जो:

  • सच्चाई को जान-बूझकर ठुकरा देते हैं,
  • जिनके दिल हक़ (सत्य) के लिए बंद हो चुके हैं,
  • और जो अल्लाह की नज़रों में ऐसे बन चुके हैं कि अब हिदायत (सीधा रास्ता) उनके नसीब में नहीं।

👉 ये ऐसे लोग हैं जिन पर तबलीग़ (दावत) या डराने का कोई असर नहीं होता।
जैसे कोयले को धोने से वो सफ़ेद नहीं होता, ऐसे ही इन लोगों का दिल भी सख़्त और काला हो चुका है।

[20] "बराबर है" — इसका मतलब क्या है?

"बराबर है" का मतलब यह नहीं कि नबी ﷺ का काम बेअसर है — बल्कि इसका मतलब यह है कि इन लोगों के लिए डराना या न डराना कोई फर्क नहीं डालता

➡️ मगर नबी ﷺ की ज़िम्मेदारी पूरी हो जाती है जब वो अल्लाह का पैग़ाम पहुँचा देते हैं — चाहे सामने वाला माने या न माने।

तबलीग़ का असर सामने वाले की नियत और दिल की हालत पर होता है, न कि सिर्फ़ बोलने वाले की बातों पर।

👉 इसलिए इस आयत में यह नहीं कहा गया कि "आपके लिए बराबर है", बल्कि कहा गया — "उनके लिए बराबर है"।

[21] कभी ईमान नहीं लाएंगे — क्यों?

यह बात कुछ ख़ास काफ़िरों के लिए है — जैसे:

  • अबू जहल,
  • अबू लहब,
  • और उनके जैसे वो लोग जिनके दिल अल्लाह ने मोहरे लगा दी (sealed their hearts)

➡️ ये लोग वो हैं जो अंत तक काफ़िर ही रहेंगे, क्योंकि अल्लाह के इल्म में पहले से तय था कि ये लोग ईमान नहीं लाएंगे।

👉 इस आयत से ये भी साबित होता है कि अल्लाह ने अपने प्यारे नबी ﷺ को ये इल्म भी अता फरमाया था कि कौन ईमान लाएगा और कौन नहीं

हालाँकि ये आयत कुछ ख़ास लोगों के लिए थी, लेकिन इसमें दी गई बात एक आम उसूल (general rule) को भी बयान करती है — कि कुछ लोगों के दिल इतने सख़्त हो जाते हैं कि उन पर कोई असर नहीं होता।

नतीजा:

  1. कुछ ऐसे लोग होते हैं जिनके दिल हक़ (सच) के लिए पूरी तरह बंद हो जाते हैं।
  2. उनके लिए नसीहत या डराना बेअसर होता है — मगर नबी का काम फिर भी अह्म और ज़रूरी रहता है।
  3. कामयाबी की कुंजी सिर्फ़ नसीहत में नहीं — बल्कि दिल की सच्चाई और अल्लाह की हिदायत में है।

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