कुरान - 2:176 सूरह अल-बक़रा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

ذَٰلِكَ بِأَنَّ ٱللَّهَ نَزَّلَ ٱلۡكِتَٰبَ بِٱلۡحَقِّۗ وَإِنَّ ٱلَّذِينَ ٱخۡتَلَفُواْ فِي ٱلۡكِتَٰبِ لَفِي شِقَاقِۭ بَعِيدٖ

अनुवाद -

"176. यह (सज़ा) इसलिए है क्योंकि अल्लाह ने किताब हक़ के साथ नाज़िल की है [375], और बेशक, जो लोग किताब के बारे में झगड़ते हैं, वो गहरे फसाद (मतभेद) में पड़े हुए हैं।" [375]

सूरह अल-बक़रा आयत 176 तफ़सीर


[375]

अल्लाह की तरफ़ से सच्ची किताब का नुज़ूल

  • यहाँ "किताब" से मुराद कुरआन मजीद है, और कुछ तफ़सीरों में इसके दायरे में तौरात (Tauraat) भी आती है।
  • कुरआन के बारे में:
    • जो लोग कुरआन पर शक करते हैं या उसमें झगड़े पैदा करते हैं, वो दरअसल उस हक़ को झुटला रहे हैं जिसे अल्लाह ने नाज़िल किया।
  • तौरात के बारे में:
    • यहूदियों को तौरात दी गई थी और उसमें आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद ﷺ की निशानियाँ थीं।
    • अगर वो तौरात पर सही ईमान लाते, तो नबी ﷺ को पहचान कर कुबूल कर लेते।
  • हक़ के साथ किताब का नुज़ूल:
    • इसका मतलब है कि किताब में कोई झूठ या ग़लती नहीं — ये सीधी, साफ़ और सच्ची हिदायत है अल्लाह की तरफ़ से।

जो किताब में झगड़ते हैं

  • मतभेद और फसाद:
    • जो लोग किताब को लेकर झगड़ा करते हैं — मसलन उसमें तहरीफ़ (बदलाव), गलत तफ्सीर, या खुदगर्ज़ ताबीर करते हैं — वो हक़ से दूर होते चले जाते हैं।
  • गहरे फसाद में होना:
    • यानी ये लोग हक़ और बातिल में फर्क नहीं कर पाते, खुद भी गुमराह होते हैं और दूसरों को भी गुमराह करते हैं।
    • इससे उम्मत में तफरक़ा (विभाजन) पैदा होता है, और अल्लाह की नाराज़गी का कारण बनता है।

सीख:
यह आयत हमें बताती है कि अल्लाह की किताबें हमेशा हक़ के साथ आई हैं, और जो भी उनमें जानबूझकर शक या झगड़ा करता है, वह सिर्फ अपने आपको गुमराही में डाल रहा है। हमें किताब को समझकर, दिल से मानकर और अमल करके उसकी रोशनी में चलना चाहिए।

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