"कह दीजिए (ऐ मुहम्मद): क्या तुम हमसे अल्लाह के बारे में झगड़ते हो [279], हालाँकि वो हमारा रब भी है और तुम्हारा रब भी? हमारे लिए हमारे आमाल, और तुम्हारे लिए तुम्हारे आमाल हैं। और हम उसी के लिए खालिस हैं [280]।"
📌 सबक़: जो लोग रसूल ﷺ के मक़ाम को झुठलाते हैं, असल में वो अल्लाह की हिकमत और फैसले पर एतराज़ कर रहे होते हैं।
📌 लेकिन असल इख़लास (sincerity) का मतलब क्या है?
👉 वो यह कि अल्लाह के रसूल ﷺ से भी पूरी वफ़ादारी और इताअत (obedience) हो।
क्योंकि जैसा अल्लाह ने फ़रमाया:
📖 "जिसने रसूल की इताअत की, उसने अल्लाह की इताअत की।" (सूरह 4, आयत 80)
🚫 अगर कोई कहे कि वो अल्लाह से तो मोहब्बत करता है लेकिन रसूल ﷺ की इताअत नहीं करता — तो ये झूठी और अधूरी मोहब्बत है।
1. अल्लाह सबका रब है:
वो सिर्फ़ एक क़ौम या जात का नहीं — हर इंसान का रब है। इसलिए नबूवत का फैसला भी उसी का हक़ है।
2. अमल की ज़िम्मेदारी अलग-अलग है:
हर इंसान के लिए उसके अपने आमाल का हिसाब है। ना कोई नस्ल बचा सकती है, ना रिश्ता।
3. इख़लास का असली मतलब:
अल्लाह के लिए खालिस होने का मतलब है — अल्लाह और उसके रसूल ﷺ दोनों की पूरी इताअत।
4. रसूल ﷺ की इताअत = अल्लाह की इताअत:
जो रसूल को न माने, वो अल्लाह की भी इताअत नहीं कर रहा — चाहे ज़बान से कुछ भी कहे।
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सूरह अल-बक़रा आयत 139 तफ़सीर