कुरान - 2:9 सूरह अल-बक़रा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

يُخَٰدِعُونَ ٱللَّهَ وَٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ وَمَا يَخۡدَعُونَ إِلَّآ أَنفُسَهُمۡ وَمَا يَشۡعُرُونَ

अनुवाद -

9. वो लोग अल्लाह [25] और ईमान वालों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन दरअसल वो सिर्फ़ अपने आप को धोखा देते हैं और उन्हें इसका एहसास तक नहीं होता।

सूरह अल-बक़रा आयत 9 तफ़सीर


आयत 9 (सूरह अल-बक़रह) — तफ़सीर और समझ

9. वो लोग अल्लाह [25] और ईमान वालों को धोखा देने की कोशिश करते हैं, लेकिन दरअसल वो सिर्फ़ अपने आप को धोखा देते हैं और उन्हें इसका एहसास तक नहीं होता।

[25] अल्लाह और ईमानदारों को धोखा देने की कोशिश

➡️ "वो लोग अल्लाह और ईमान वालों को धोखा देने की कोशिश करते हैं..."
यह आयत मुनाफिक़ों (दिखावे के मुसलमानों) के बारे में है।
ये लोग:

  • जुबान से ईमान लाते हैं,
  • लेकिन दिल से इनकार करते हैं
    👉 यह झूठा दिखावा अल्लाह और उसके रसूल ﷺ को धोखा देने की कोशिश जैसा है।

➡️ "असल में वो सिर्फ़ खुद को धोखा देते हैं..."
लेकिन हक़ीक़त में:

  • ना तो अल्लाह को धोखा दिया जा सकता है,
  • ना सच्चे मुसलमानों को लंबे वक़्त तक बेवकूफ़ बनाया जा सकता है।

👉 जिसे वो दूसरों को छल समझते हैं, वह असल में खुद उनके लिए नुकसानदायक होता है

➡️ "और उन्हें इसका एहसास भी नहीं होता..."
इन मुनाफ़िक़ों की सबसे बड़ी मुसीबत यही है —
कि वो अपनी असल हालत को समझते ही नहीं
उन्हें लगता है कि वो बहुत चालाक हैं, लेकिन वो सबसे ज़्यादा धोखा खुद को ही दे रहे हैं।

सीख:

  1. दीन में दिखावा (रियाकारी) अल्लाह के सामने कुछ भी नहीं छुपा सकती।
  2. जो लोग बाहरी तौर पर मुसलमान बनते हैं, लेकिन दिल में कुफ्र रखते हैं — वो खुद अपनी तबाही तय कर रहे होते हैं।
  3. अल्लाह की नज़र से कुछ भी छुपाया नहीं जा सकता, इसलिए हमें चाहिए कि दिल से सच्चा ईमान लाएं।

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