कुरान - 2:194 सूरह अल-बक़रा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

ٱلشَّهۡرُ ٱلۡحَرَامُ بِٱلشَّهۡرِ ٱلۡحَرَامِ وَٱلۡحُرُمَٰتُ قِصَاصٞۚ فَمَنِ ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡ فَٱعۡتَدُواْ عَلَيۡهِ بِمِثۡلِ مَا ٱعۡتَدَىٰ عَلَيۡكُمۡۚ وَٱتَّقُواْ ٱللَّهَ وَٱعۡلَمُوٓاْ أَنَّ ٱللَّهَ مَعَ ٱلۡمُتَّقِينَ

अनुवाद -

194. "महीना हराम का बदला हराम महीने से है [442], और हर (नाफरमानी या ज़ुल्म) के लिए बराबर बदला है। तो जो तुम पर ज़्यादती करे, तुम भी उस पर वैसी ही ज़्यादती करो [443] जैसी उसने तुम पर की हो। और अल्लाह से डरते रहो, और जान लो कि अल्लाह परहेज़गारों के साथ है [444]।"
(सूरह अल-बक़रह – आयत 194, क़ुरआन मजीद तर्जुमा: क़न्ज़ुल ईमान)

सूरह अल-बक़रा आयत 194 तफ़सीर


✅ [442] हराम महीना और मुआमला

हराम महीना कौन-से हैं?

  • इस्लाम में चार महीने "हराम" (पवित्र) माने जाते हैं: महर्रम, रजब, ज़िलक़ादा, और ज़िलहिज्जा।
  • इन महीनों में जंग और ख़ून-खराबा मना था, लेकिन मक्का के मुशरिकों ने खुद इस कानून को तोड़ा।

हुड्डैबिया का सन्दर्भ:

  • 6 हिजरी में मक्का के मुशरिकों ने मुसलमानों को ज़िलक़ादा के महीने में उमरा करने से रोका,
    जोकि एक हराम महीना था। यह सरेआम उस हराम महीने की बेअदबी थी।

जवाबी कार्रवाई का हक़:

  • अल्लाह ने इस आयत में फ़रमाया कि हराम महीने के बदले में हराम महीने में ही बदला लिया जा सकता है,
    लेकिन सीमाओं के भीतर और इंसाफ़ के साथ।

✅ [443] ज़्यादती का जवाब — उतनी ही ज़्यादती

इंसाफ़ पर आधारित बदला:

  • अगर दुश्मन तुम पर ज़ुल्म करे, तो उसी हद तक जवाब देना जायज़ है,
    न उससे बढ़कर और न ज़्यादा सख़्ती से।

मकसद इन्तिक़ाम नहीं, इंसाफ़ है:

  • इस्लाम ज़्यादती का जवाब अहंकार या बदले की आग में जल कर देने की इजाज़त नहीं देता,
    बल्कि कहता है कि जो नुक़सान तुमको हुआ, बस उतना ही बराबरी से जवाब दो।

हद से आगे न बढ़ना:

  • अल्लाह ने साफ़ हिदायत दी कि हद से बढ़ना यानी तअद्दी (transgression) न हो।
    इससे मुस्लिमों की न्यायप्रियता और संयम का सबूत मिलता है।

✅ [444] अल्लाह का डर और उसका साथ

तक़्वा की तालीम:

  • इस आयत के आख़िर में अल्लाह ने तकीद की: "अल्लाह से डरते रहो"।
    यानी, बदले या जवाबी कार्रवाई के वक़्त भी इंसाफ़ का दामन हाथ से न छोड़ो।

अल्लाह मुत्तक़ियों के साथ है:

  • यह बहुत बड़ा ईमानी पेग़ाम है:
    अगर तुम परहेज़गारी (तक़्वा) पर कायम रहो, तो अल्लाह हर हाल में तुम्हारे साथ रहेगा,
    चाहे मामला जंग का हो, इंसाफ़ का हो या कोई मुसीबत का।

📚 नतीजा (सार)

  • इस आयत में मुसलमानों को इंसाफ़ के दायरे में रहकर जवाबी कार्रवाई की इजाज़त दी गई है।
  • बदले की भावना में बहकर हद से पार न जाने की ताकीद की गई है।
  • अल्लाह का डर रखने वाले, यानी मुत्तक़ी, अल्लाह की मदद और रहमत के हक़दार हैं।

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