"क्या तुम कहते हो कि इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक़, याक़ूब और उनकी औलाद यहूदी या नसरानी थे? कह दीजिए (ऐ मुहम्मद): क्या तुम ज़्यादा जानते हो या अल्लाह? और उस शख़्स से बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो उस गवाही को छुपाए जो उसके पास अल्लाह की तरफ़ से है? बेशक अल्लाह उस से बेख़बर नहीं जो तुम करते हो।"
📌 लेकिन सच ये है कि यहूदियत और नस्रानियत तो इब्राहीम अ.स. के बहुत बाद में वजूद में आईं।
🛑 तो इब्राहीम अ.स. या उनके बेटे-पोते कैसे इन में से किसी एक मज़हब से हो सकते हैं?
नतीजा:
ये दोनों दावे इतिहास और दीन दोनों के लिहाज़ से झूठे हैं।
📌 इस सवाल से उनका झूठ और घमंड ज़ाहिर हो जाता है।
क्योंकि जो लोग अल्लाह के इल्म को छोड़ कर खुद को बड़ा समझें, वो गुमराही में हैं।
📌 सबक़:
🕌 जैसे कि:
📌 वो देखने वाला भी है और हिसाब लेने वाला भी —
कोई भी ज़ुल्म, फ़रेब या दग़ा उससे छुप नहीं सकता।
1. हज़रत इब्राहीम अ.स. किसी मज़हबी लेबल से बंधे नहीं थे:
वो ना यहूदी थे, ना नसरानी — वो सिर्फ़ अल्लाह के खालिस बन्दे थे।
2. अल्लाह का इल्म सबसे ऊपर है:
अपने मन की बातों को सच मानकर अल्लाह के हुक्मों का इंकार करना — गुमराही है।
3. दीन की गवाही को छुपाना बड़ा ज़ुल्म है:
सच को छुपाने वाले अल्लाह के नज़दीक सबसे बड़े ज़ालिम हैं।
4. अल्लाह सब देखता और जानता है:
कोई अमल — चाहे अच्छा हो या बुरा — अल्लाह से छुपा नहीं।
For a faster and smoother experience,
install our mobile app now.
सूरह अल-बक़रा आयत 140 तफ़सीर