"और उन्होंने (अहले किताब ने) कहा: 'यहूदी या नसारा बन जाओ, तो हिदायत पाओगे।' कह दीजिए (ऐ मुहम्मद): 'बल्कि हम इबराहीम का दीन अपनाते हैं, जो सीधे रास्ते पर थे [269], और वो मुशरिकों में से नहीं थे।'" [270]
📖 दुआ: "ऐ अल्लाह! हमें भी ऐसा पाक और मज़बूत ईमान अता फ़रमा। आमीन।"
1. इबराहीम (अ.स.) की पूरी इंसानियत में इज़्ज़त:
हर मज़हब के लोग हज़रत इबराहीम (अ.स.) से जुड़ना चाहते हैं — यह उनकी बुलंद मक़ामत (उँचा दर्जा) का सबूत है।
2. नसब (वंश) काफ़ी नहीं:
अगर किसी का ताल्लुक़ किसी नेक इंसान से हो, लेकिन उनके रास्ते पर न चले — तो यह कोई फ़ायदा नहीं देता। हिदायत नाम है अमल का।
3. दीन में इख़्तिलाफ़ कैसे हल करें:
जहाँ दीन में फ़र्क हो, वहाँ हल है कि सहाबा, या क़ुरआन व सहीह हदीस की तरफ़ रुझू किया जाए। universally respected sources पर लौटना चाहिए।
4. दीन की अज़मत उसके बानी से होती है:
हज़रत इबराहीम (अ.स.) की शख्सियत इतनी बड़ी थी कि अल्लाह तआला ने उनके दीन को भी बड़ा बताया — जिसका बानी पाक हो, उसका दीन भी पाक होता है।
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सूरह अल-बक़रा आयत 135 तफ़सीर