कुरान - 2:135 सूरह अल-बक़रा अनुवाद, लिप्यंतरण और तफसीर (तफ्सीर).

وَقَالُواْ كُونُواْ هُودًا أَوۡ نَصَٰرَىٰ تَهۡتَدُواْۗ قُلۡ بَلۡ مِلَّةَ إِبۡرَٰهِـۧمَ حَنِيفٗاۖ وَمَا كَانَ مِنَ ٱلۡمُشۡرِكِينَ

अनुवाद -

"और उन्होंने (अहले किताब ने) कहा: 'यहूदी या नसारा बन जाओ, तो हिदायत पाओगे।' कह दीजिए (ऐ मुहम्मद): 'बल्कि हम इबराहीम का दीन अपनाते हैं, जो सीधे रास्ते पर थे [269], और वो मुशरिकों में से नहीं थे।'" [270]

सूरह अल-बक़रा आयत 135 तफ़सीर


[269] "बल्कि हम इबराहीम का दीन अपनाते हैं, जो सीधे रास्ते पर थे"

  • यहाँ अल्लाह तआला यह बता रहे हैं कि सच्चा रास्ता सिर्फ़ यहूदी या नसारा बनने में नहीं है, बल्कि हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम के पाक दीन में है।
  • हज़रत इबराहीम (अ.स.) का दीन था खालिस तौहीद (सिर्फ़ एक अल्लाह की इबादत), उसमें कोई बुत-परस्ती या मिलावट नहीं थी।
  • जैसे लोग खालिस सोना या शुद्ध दूध को पसंद करते हैं, वैसे ही पाक ईमान सबसे ज़्यादा क़ीमती होता है।

📖 दुआ: "ऐ अल्लाह! हमें भी ऐसा पाक और मज़बूत ईमान अता फ़रमा। आमीन।"

[270] "...और वो मुशरिकों में से नहीं थे।"

  • इस टुकड़े में यहूद और नसारा के उस दावे को रद (झुठलाया) गया है, जिसमें वो कहते थे कि वो इबराहीम (अ.स.) के रास्ते पर हैं।
  • हक़ीक़त यह है कि उन्होंने अपने दीन में शिर्क, बुत-परस्ती और इंसानी बनाए हुए क़ानून शामिल कर लिए थे — जो इबराहीम (अ.स.) के साफ़-सुथरे दीन के खिलाफ़ है।
  • असली इब्राहीमी वो है जो तौहीद के रास्ते पर चले — और इबराहीम (अ.स.) कभी भी मुशरिक नहीं थे।

🌟 इस आयत से मिलने वाले अहम सबक़:

1. इबराहीम (अ.स.) की पूरी इंसानियत में इज़्ज़त:
हर मज़हब के लोग हज़रत इबराहीम (अ.स.) से जुड़ना चाहते हैं — यह उनकी बुलंद मक़ामत (उँचा दर्जा) का सबूत है।

2. नसब (वंश) काफ़ी नहीं:
अगर किसी का ताल्लुक़ किसी नेक इंसान से हो, लेकिन उनके रास्ते पर न चले — तो यह कोई फ़ायदा नहीं देता। हिदायत नाम है अमल का।

3. दीन में इख़्तिलाफ़ कैसे हल करें:
जहाँ दीन में फ़र्क हो, वहाँ हल है कि सहाबा, या क़ुरआन व सहीह हदीस की तरफ़ रुझू किया जाए। universally respected sources पर लौटना चाहिए।

4. दीन की अज़मत उसके बानी से होती है:
हज़रत इबराहीम (अ.स.) की शख्सियत इतनी बड़ी थी कि अल्लाह तआला ने उनके दीन को भी बड़ा बताया — जिसका बानी पाक हो, उसका दीन भी पाक होता है।

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